मन मस्तिष्क के मधुर-भाव को हमने भी दुत्कार दिया साथ किया खूनी सर्कस का गुंडो का सत्कार किया अपनी पीड़ा को पीने को उलझी बाजी को सुलझाने प्रेम-राह से इतर जंग को हमने सीखे नए तराने जगती के सब सुख को तजकर हमने थामा हाथ नवल का जुर्म राह में पांव पसारे पीकर कड़वा घूँट गरल का रंगों के उलझे तिलिस्म में नित्य नए षड्यंत्र बनाए उन्मादों की चोटी पर चढ़ संविधान के शोक मनाए दुखती रग पर हाथ रखें हम बेढब-सत्ता को बहलाने शिक्षा के मंदिर में घुसकर खड़े किए बेखौफ मुहाने हमने खींची निज हाथों से अपने मर्दन की रेखा उठा धुंध नैतिक शिखरों पर स्वप्न अभागा ये देखा नाश करें खुद अपनेपन का नाश हुआ जग ये सारा हाथ पसारे घूमे भारत अपने ही जन का मारा हे वीर! अगर होगा ऐसा श्री राम को क्या बतलाओगे रस प्रेम पगे मनमोहन को कैसे तुम मुख दिखलाओगे है समय शेष नव निर्मित कर खुद से खुद के नव-जीवन को अपनी आँचल से ढाँप सकल तपती वसुधा के पीड़न को...। - Ankesh verma
प्रेम, समाज और कल्पना का समागम..