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जनवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अपराधी...🍁

मन मस्तिष्क के मधुर-भाव को  हमने भी दुत्कार दिया साथ किया खूनी सर्कस का गुंडो का सत्कार किया अपनी पीड़ा को पीने को उलझी बाजी को सुलझाने प्रेम-राह से इतर जंग को हमने सीखे नए तराने जगती के सब सुख को तजकर हमने थामा हाथ नवल का जुर्म राह में पांव पसारे पीकर कड़वा घूँट गरल का रंगों के उलझे तिलिस्म में नित्य नए षड्यंत्र बनाए उन्मादों की चोटी पर चढ़ संविधान के शोक मनाए दुखती रग पर हाथ रखें हम  बेढब-सत्ता को बहलाने शिक्षा के मंदिर में घुसकर खड़े किए बेखौफ मुहाने हमने खींची निज हाथों से अपने मर्दन की रेखा उठा धुंध नैतिक शिखरों पर स्वप्न अभागा ये देखा नाश करें खुद अपनेपन का नाश हुआ जग ये सारा हाथ पसारे घूमे भारत अपने ही जन का मारा हे वीर! अगर होगा ऐसा श्री राम को क्या बतलाओगे रस प्रेम पगे मनमोहन को कैसे तुम मुख दिखलाओगे है समय शेष नव निर्मित कर खुद से खुद के नव-जीवन को अपनी आँचल से ढाँप सकल तपती वसुधा के पीड़न को...। - Ankesh verma

धर्मयुद्ध...🍁

जन-जन के जी गहराते हैं हम मनुष्य जान न पाते हैं हे कृष्ण जहाँ तुम रहते हो मस्जिद से तुमको डर है क्या... क्या वहाँ नही कोई गिरजा  या चादर से लिपटी माटी है केवल यज्ञों की वेदी या जलती बस घी की बाती क्या कोई टोपीधारी भी आता नही है अनायास क्या हम जैसे मानुष के जस करते रहते तुम ये प्रयास की अपनी धरती पर हम  देंगे न तुमको दिवा-याम क्या धर्म की नंगी तलवारों से छिड़ा हुआ ये संग्राम क्या तुम भी बाबर माफ़िक हो या मिशनरियों के मधुर लोभ क्या सच में तुम भूले प्रेम करते रहते उन पर क्रोध हे कान्हा गर ये मिथ्या है तो मानूँ क्या मैं नव पथ को ले साथ सभी रंगों को मैं चढ़ जाऊं धर्म सुपथ रथ को मैं निर्बल हूँ जो अपनों को रंगों में बांटा पाता हूँ गर करूँ प्रेम सब धर्मों को कायर कहलाया जाता हूँ हे कृष्ण तुम्हीं बतलाओ अब कोई उचित मार्ग दिखलाओ अब  धर्म-धर्म की जय-जय कर  उत्पात मचा न पाउँगा कटती है गर्दन कटे मगर मैं धर्म नही ला पाऊंगा..। - अंकेश वर्मा