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अपराधी...🍁


मन मस्तिष्क के मधुर-भाव को 
हमने भी दुत्कार दिया
साथ किया खूनी सर्कस का
गुंडो का सत्कार किया
अपनी पीड़ा को पीने को
उलझी बाजी को सुलझाने
प्रेम-राह से इतर जंग को
हमने सीखे नए तराने
जगती के सब सुख को तजकर
हमने थामा हाथ नवल का
जुर्म राह में पांव पसारे
पीकर कड़वा घूँट गरल का
रंगों के उलझे तिलिस्म में
नित्य नए षड्यंत्र बनाए
उन्मादों की चोटी पर चढ़
संविधान के शोक मनाए
दुखती रग पर हाथ रखें हम 
बेढब-सत्ता को बहलाने
शिक्षा के मंदिर में घुसकर
खड़े किए बेखौफ मुहाने
हमने खींची निज हाथों से
अपने मर्दन की रेखा
उठा धुंध नैतिक शिखरों पर
स्वप्न अभागा ये देखा
नाश करें खुद अपनेपन का
नाश हुआ जग ये सारा
हाथ पसारे घूमे भारत
अपने ही जन का मारा
हे वीर! अगर होगा ऐसा
श्री राम को क्या बतलाओगे
रस प्रेम पगे मनमोहन को
कैसे तुम मुख दिखलाओगे
है समय शेष नव निर्मित कर
खुद से खुद के नव-जीवन को
अपनी आँचल से ढाँप सकल
तपती वसुधा के पीड़न को...।


- Ankesh verma

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इप्रेक्💖

लालकिले के प्रांगण में विचरते हुए वो मुझे इतिहास के कुछ रोचक किस्से सुना रही थी...  जिनमें कुछ सच तो कुछ झूठ थे... सब कुछ जानने के बावजूद भी मैं एक अच्छे साथी के दायित्व का निर्वहन करते हुए उसकी झूठी बातों को नजरअंदाज कर रहा था... पर एक बात थी जो मुझे बार-बार विचलित कर रही थी... दरअसल पूरी यात्रा की दौरान उसकी रेशमी जुल्फ़े उसके माथे पर आ जाती जिसे वो हर बार झटक देती... इसी बीच उसने अकबर के मयूर सिंहासन से जुड़े किस्से सुनने आरम्भ किये जिसे मैं सुनते हुए भी अनसुना कर रहा था.... असल में मयूर सिंहासन का नाम सुनते ही मेरे जेहन में शाहजहां की एक धुंधली तस्वीर उभरी.... और मैं आवारों की भांति उसकी जुल्फों में खोया निकल पड़ा लालकिला के रास्ते इस मुमताज के लिए एक नए ताजमहल के निर्माण को.....                                 -अंकेश वर्मा

हमारे किस्से..🍁

उसके आँखो की गुश्ताखियों की जो मनमानी है मेरा इतिबार करो ये जहां वालों बड़ा शैतानी है.। किसी के इश्क़ में बेतरतीब हो जाऊं ये आसां तो नही मेरे किरदार के माफ़िक मेरा इश्क़ भी गुमानी है.। मेरी कमबख्त आँखें उसके नूर को समेट नही पाती  उसका अक्स भी कुछ-कुछ परियों सा रूहानी है.। उसके माथे को चूमती जुल्फ़ें मुझे मदहोश करती हैं  किसी न किसी रोज़ ये बात उसको बतानी है.। गर वो मेरे सामने रोए तो मुझे रोने से इनकार नही मुझे तो अब सिर्फ उसी से निभानी है.। गर उसे मुझपे एतबार न हो तो कोई आफ़त नही मैं उसे जाने दूँगा कर्ण सा मेरा इश्क़ भी दानी है..।।                                                - अंकेश वर्मा

घर मे घर..🍁

कभी बँटवारे  तो कभी घर के  भीतरी दीवारों का द्वन्द कभी अपनी अवहेलना तो कभी पिता की तानाशाही से कभी माँ के साथ को अथवा बहन के भीगे नयनों से या अपनी सत्ता स्थापित करने को कई बार खुद से भी बिगड़ते हैं रिश्ते बच्चे जब बड़े हो जाते है घर मे कई घर हो जाते हैं..!                    - अंकेश वर्मा