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सफर जारी है...

मेरी कविताएं ही मेरी सम्पूर्ण सम्पति रही हैं इसका एकमात्र कारण ये है कि केवल ये ही हैं जो मेरे उन वादों की गवाह हैं जो मैंने स्वयं से किए है ।
मेरी कविताएं मेरे और मेरे जैसे तमाम उन लोगों के भीतर के द्वंद का साकार रूप हैं जो सपने देखने से रोमांचित होने के साथ साथ उन सपनों से डरते भी हैं ।
 जीवन के कई बसंत पार करने के दौरान जो भी देखा,सुना और महसूस किया ये कविताएं उन्ही का प्रतिनिधित्व करती हैं ।
गुजरते वक्त के साथ इसने सीने में एक गुबार भर दिया है जो आंखों में सिमटा है ठहरा है लेकिन कहीं जाने को तैयार नही । कुछ और भी है जो गले को भारी कर रहा है रुलाने पर आमादा है । ये सब का सब कविता का ही दिया हुआ है ।
                                                            मेरी कविताएं गांव के उन लोगों का भी प्रतिनिधित्व करती हैं जिन्हें कविता से कोई लेना देना नही हैं । जब सारा विश्व चाँद पर बस्ती बनाने की तैयारी में है तब ये गाँव मेढ़ के बंटवारे में उलझे पड़े हैं ।
मेरा अपने स्वप्नों से एक वादा यह भी रहा है कि मैं इन गांव वालों को भी कविता पढ़ने को प्रेरित कर सकूं जिससे वो भी पाश की कविताएं पढ़ खुद को सामंतवाद की बेड़ियों से आजाद कर सकें । जब भी मस्तिष्क ऐसे किसी स्वप्न में फंसकर मन को पीड़ित करता है तब लेखक मन कलम और कागज की ओर विनय भाव से देखता है और कुछ उलझी और कुछ सुलझी रचना का जन्म होता है । द्वंद में कागज पर लिखे गए ये व्यवस्थित या अव्यवस्थित अक्षर मन को शांत करने के अलावा एक नवीन संसार को रचते हैं , ऐसे में उपजती है प्रेम और क्रांति की फसल जो कवि के मन के साथ ही साथ हर वंचित की भूख को भी शांत करने का प्रयास करती हैं और यहीं से मेरी कविताओं की यात्रा का आरम्भ होता है ।

- अंकेश कुमार वर्मा "अर्जुन"

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घर मे घर..🍁

कभी बँटवारे  तो कभी घर के  भीतरी दीवारों का द्वन्द कभी अपनी अवहेलना तो कभी पिता की तानाशाही से कभी माँ के साथ को अथवा बहन के भीगे नयनों से या अपनी सत्ता स्थापित करने को कई बार खुद से भी बिगड़ते हैं रिश्ते बच्चे जब बड़े हो जाते है घर मे कई घर हो जाते हैं..!                    - अंकेश वर्मा 

गज़ल..🍁

उसने हमपर रहमत की हम बिखर गए रोका-टोका राह शजर* की बिखर गए.। हुए जुनूनी बस्ती-बस्ती डेरा डाला राह कटीली जंगल घूमे बिखर गए.। उसने की गद्दारी बेशक अपना माना हममे थी खुद्दारी फिर भी बिखर गए.। साथ रहे और उसके दिल पर जुम्बिश* की खुद को दिया अज़ाब* और हम बिखर गए.। उसने उनको अपनाया जिनको चाहा उसकी जीनत उसकी जन्नत हम बिखर गए.। सुना बने वो जिनपर उसने हाथ रखा हम ही एक नाक़ाबिल थे सो बिखर गए.।। शजर*- पेड़ जुम्बिश*- हलचल अज़ाब*- पीड़ा                               - अंकेश वर्मा

असीमित इच्छाएं ...🍁

तुम्हारे अविश्वास की कालकोठरी में मैं अनहोनी को होनी मानता था तुम्हारा होना सावन का आभासी था मैं तुमसे मिलकर, अपना सर्वस्व खोना चाहता था ठीक उसी भांति, जैसे ओस की बूंद सूखकर खो देती है अपना स्वरूप पुनः सृष्टि के निर्माण को । © ANKESH VERMA