रात्रि का भोर बसन्त-पंचमी का त्योहार रिमझिम बारिश पीपल की ऊंची डाल पर लटकता झूला झूले पर अट्ठहास करती बालाएं फूल से गुंथे डंडे लिए शरारती बच्चों की टोली और इन सब को देख कर भी अनदेखा करते एक पिता द्वार पर चहलकदमी कर रहे थे कुछ उलझे हुए से थे अचानक एक नन्ही किलकारी गूंजी इसी किलकारी में घर के लोगों ने देखे भिन्न-भिन्न सपने पिता ने देखा - अपने वंश का एक और चिराग जो फलित करेगा उनके सपनों को भाई को दिखा एक नन्हा सा जादुई खिलौना बहन को दिखी इक और कलाई.. वो माँ ही थी जिसने लिया फैसला अपनी उम्र को और लंबा करने का अपनी नन्ही जान की खातिर...! - अंकेश वर्मा
प्रेम, समाज और कल्पना का समागम..