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जून, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

माँ...💖

रात्रि का भोर  बसन्त-पंचमी का त्योहार रिमझिम बारिश  पीपल की ऊंची डाल पर लटकता झूला झूले पर अट्ठहास करती बालाएं फूल से गुंथे डंडे लिए  शरारती बच्चों की टोली और इन सब को  देख कर भी अनदेखा करते एक पिता द्वार पर चहलकदमी कर रहे थे कुछ उलझे हुए से थे अचानक एक नन्ही किलकारी गूंजी इसी किलकारी में  घर के लोगों ने देखे भिन्न-भिन्न सपने पिता ने देखा - अपने वंश का एक और चिराग जो फलित करेगा उनके सपनों को भाई को दिखा  एक नन्हा सा जादुई खिलौना बहन को दिखी इक और कलाई.. वो माँ ही थी जिसने लिया फैसला  अपनी उम्र को और लंबा करने का अपनी नन्ही जान की खातिर...!                              - अंकेश वर्मा

तरक्की...?

तुम्हारे घर के पिछले दरवाज़ों से आती हुई अंग्रेजी शराब की बोतलें मेरी नज़र में हैं सामने के दरवाजे से चाहे कितनी भी चकाचौंध घुसे वो काफी नही है  मुझे अंधा करने को दिखते हैं मुझे तुम्हारे दालानों में बैठे अफसर जो कर चुके है अपने ज़मीर का सौदा तुम्हारी मुफ्त की शराब के लिए मैं देख सकता हूँ तुम्हारी दालान के नाच-गानों और बदहवास पिछले कमरों में एक मजबूर स्त्री के ठुमकों के बीच गाँव के सैकड़ो लोगों के जीवन के मोलभाव को उनके अधिकारों की  सस्ती कीमतों को  मिट्टी की पगडंडियों पर ईंटों के चमचम से ऊपर  हम देख नही पा रहे हैं अपनी तरक्की को बस एक निवेदन है अपने दालानों को देखने देना हम गाँव वालों को भी ताकि हमें भी आभास हो अपनी बदलती परिस्थितियों का...!                        -अंकेश वर्मा

प्रेम..💖

प्रेम चुनता है  नित नए पत्ते कुछ गिरते है  कुछ देते हैं.. थोड़ी देर सहारा कुछ बलि चढ़ते है पूजा-पाठ के कुछ ठिठोली में