प्रियवर तुमपर प्राण लुटाऊं
जीवन की मधुमास लुटाऊं
मधुर स्मृतियों की छाया में
मैं अपना धन-धान्य लुटाऊं
प्रियवर तुमपर प्राण लुटाऊं
दूर गगन में कलरव करता
प्यासी धरती पर आ गिरता
दुःखयारों के दुख को पीकर
सृष्टि का आशीष कमाऊं
प्रियवर तुमपर प्राण लुटाऊं
बैठ अकेली दुःखी जब होती
सारी मातायें मुझे पा लेती
पा अमर लाड़ उन सबका
नित चरणों मे शीश नवाऊं
प्रियवर तुमपर प्राण लुटाऊं
बना डाकिया पत्र मैं लाता
विरही के सब दुख हर जाता
प्रिय के कुशल-क्षेम दे-देकर
जीवन की धमनी बन जाऊं
प्रियवर तुमपर प्राण लुटाऊं
सारे जन थक जब सो जाते
हम दोनों तब बाहर आते
बैठ रात्रि में छत के ऊपर
मनभावन मैं राग सुनाऊं
प्रियवर तुमपर प्राण लुटाऊं
शीतल सरित बहता जल मानिंद
बैठ स्वयं ईश्वर के सानिध्य
पा अमरत्व मानवता की खातिर
मैं अपना नव-धाम रचाऊं
प्रियवर तुमपर प्राण लुटाऊं
जीवन के मधुमास लुटाऊं..!
जीवन के मधुमास लुटाऊं..!