तुम्हारे घर के पिछले दरवाज़ों से
आती हुई अंग्रेजी शराब की बोतलें
मेरी नज़र में हैं
सामने के दरवाजे से
चाहे कितनी भी चकाचौंध घुसे
वो काफी नही है
मुझे अंधा करने को
दिखते हैं मुझे
तुम्हारे दालानों में बैठे अफसर
जो कर चुके है अपने ज़मीर का सौदा
तुम्हारी मुफ्त की शराब के लिए
मैं देख सकता हूँ
तुम्हारी दालान के नाच-गानों
और बदहवास पिछले कमरों में
एक मजबूर स्त्री के ठुमकों के बीच
गाँव के सैकड़ो लोगों के
जीवन के मोलभाव को
उनके अधिकारों की
सस्ती कीमतों को
मिट्टी की पगडंडियों पर
ईंटों के चमचम से ऊपर
हम देख नही पा रहे हैं
अपनी तरक्की को
बस एक निवेदन है
अपने दालानों को देखने देना
हम गाँव वालों को भी
ताकि हमें भी आभास हो
अपनी बदलती परिस्थितियों का...!
-अंकेश वर्मा
आती हुई अंग्रेजी शराब की बोतलें
मेरी नज़र में हैं
सामने के दरवाजे से
चाहे कितनी भी चकाचौंध घुसे
वो काफी नही है
मुझे अंधा करने को
दिखते हैं मुझे
तुम्हारे दालानों में बैठे अफसर
जो कर चुके है अपने ज़मीर का सौदा
तुम्हारी मुफ्त की शराब के लिए
मैं देख सकता हूँ
तुम्हारी दालान के नाच-गानों
और बदहवास पिछले कमरों में
एक मजबूर स्त्री के ठुमकों के बीच
गाँव के सैकड़ो लोगों के
जीवन के मोलभाव को
उनके अधिकारों की
सस्ती कीमतों को
मिट्टी की पगडंडियों पर
ईंटों के चमचम से ऊपर
हम देख नही पा रहे हैं
अपनी तरक्की को
बस एक निवेदन है
अपने दालानों को देखने देना
हम गाँव वालों को भी
ताकि हमें भी आभास हो
अपनी बदलती परिस्थितियों का...!
-अंकेश वर्मा