तुझे भी तुझ सा मिला अच्छा हुआ तुझसे बात की और चुप भी रहा अच्छा हुआ मेरी दुखती रिसती रग भी तुझे बद्दुआ न दे पाई फिर भी जो न सोचा वो हुआ अच्छा हुआ सुना है वो कहानियों का शौकीन नही है तुम्हारे साथ तो है पर तुम्हारे साथ का शौकीन नही है वो सुनकर भी तुम्हे अनसुना करता है अच्छा हुआ वादा दूर का किया है उसने तुम्हे नही तुम्हारा जिस्म जिया है तुम रोती हो तो मनाता भी नही अच्छा हुआ तुझे भी तुझ सा मिला अच्छा हुआ तुझसे बात की और चुप भी रहा अच्छा हुआ...! -अंकेश वर्मा
प्रेम, समाज और कल्पना का समागम..