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अप्रैल, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हमारे किस्से..🍁

उसके आँखो की गुश्ताखियों की जो मनमानी है मेरा इतिबार करो ये जहां वालों बड़ा शैतानी है.। किसी के इश्क़ में बेतरतीब हो जाऊं ये आसां तो नही मेरे किरदार के माफ़िक मेरा इश्क़ भी गुमानी है.। मेरी कमबख्त आँखें उसके नूर को समेट नही पाती  उसका अक्स भी कुछ-कुछ परियों सा रूहानी है.। उसके माथे को चूमती जुल्फ़ें मुझे मदहोश करती हैं  किसी न किसी रोज़ ये बात उसको बतानी है.। गर वो मेरे सामने रोए तो मुझे रोने से इनकार नही मुझे तो अब सिर्फ उसी से निभानी है.। गर उसे मुझपे एतबार न हो तो कोई आफ़त नही मैं उसे जाने दूँगा कर्ण सा मेरा इश्क़ भी दानी है..।।                                                - अंकेश वर्मा

परंपरा...⚔

तुम्हारी ख़ामोशी  तुम्हें तबाह करेगी तुम जितना दबोगे दबाए जाओगे झुकोगे  तो वो और झुकायेंगे अभी तुममे सामर्थ्य है तुम लड़ सकते हो अपनी गठीली भुजाओं से अपनी मजबूत इक्षाशक्ति से हथियार बना सकते हो खुद को और उनके अन्याय को उखाड़ फेंक सकते हो याद रखना  गर ये नही किया तो आने वाली नस्लें सवाल पूछेंगी तुमसे कि तुमने उनके लिए  वो क्यों नही किया..? जब तुम कर सकते थे..! तब तुम अपने पिता को कोसोगे.. कि उन्होंने तुम्हें बेहतर संसार क्यों नही दिया..?                       -  अंकेश वर्मा

मनमौजी..🍁

वो जो वफ़ा में डूबते हैं किधर जाया करते हैं सुखन-ए-चंद लम्हों सा गुजर जाया करते हैं.। ये इश्क़ भी कुछ-कुछ सियासत सा है मख़मूर जिन्हें कुर्सी मिलती है वो संवर जाया करते हैं.। सियासत में अब भी होती हैं गुंडों की भर्तियां वो अलग बात है दिखावे को सब सुधर जाया करते हैं.। देखो न ये गाँव के लोग अब भी पहले से ही तो हैं डरते भी नही और अपनों की खातिर डर जाया करते हैं.। ये सब छोड़ो तुम सुनो न मुझसे मेरे महबूब के किस्से हम उसे देखते ही गोया मर जाया करते हैं.। जब वो हमसे पूछती है कि क्या तुम्हें हमसे इश्क़ है हम अपनी धुन के पक्के हैं हर बार मुकर जाया करते हैं.। वैसे इस जहां में ये इश्क़ भी हैरतअंगेज ही है कैसे भी मिलते है और कहीं भी बिछड़ जाया करते हैं..।।                                                       - अंकेश वर्मा

सफ़र..🍁

ये मयकदे के रस्ते पर जो बहके कदम नजर आते हैं झाँक कर देख इनमें तू हमी हम नजर आते हैं.। जहां को जकड़ना मुट्ठी में फिर जुगनू सा उछाल देना सिफ़त-ए-हसीन-सफ़र में भी बस ग़म नज़र आते है.। तेरे आने से इन वादियों में रौनक-ए-बहार आई थी तेरे जाने से अब ये रुख़सत-ए-चमन नज़र आते हैं.। भूलने की कोशिश तूने भी की भरपूर मैंने भी की बदनसी फिर भी देख हम तो सनम नजर आते हैं.। इश्क़ का रोग यूँ दिल को न लगा ये मख़मूर इश्क़-ए-बाजी में सब बेदम नजर आते हैं..।।                                              - अंकेश वर्मा

चंद दिन शेष...💖

  हमारी आखिरी मुलाकात के बाद मैंने कुछ गौर किया हम मिलते हैं ढेर सारी बातें करते हैं इस दौरान हमारे बीच झगड़े भी हुए दोनों रूठे और उठ कर चल दिए इस मिलने,रूठने और चल देने में हमारे बीच बातों का सिलसिला कमजोर हुआ है जो मेरे लिए बड़ा नुकसान है अब जब अगली बार मिलेंगे एक दूसरे से बोलेंगे नही हम बंद जुबान से  ढेर सारी बातें करेंगे एक दूजे की खुली आँखों मे देखते हुए इस तरह मैं अपने नुकसान की भरपाई कर लूंगा..!                                   - अंकेश वर्मा

मोहन आओ न....

अब प्रेम आंशिक हो चला है हर कोई अमादा है तुम्हारी नकल करने में सबने तुम्हारी बात मानी खूब प्यार बांटा इतना कि खुद बंट गए और प्रेम इतना है कि रिश्ते रिसने लगे हैं तुम कविता और कहानी में सिमटते जा रहे हो अब तो ग्रन्थ बन गए हो लोगों को अच्छा लगता है इन ग्रन्थों को पढ़ना लेकिन वे इसे किताबी मानते हैं इसके बावजूद भी कुछ हैं सरफिरे से पागल लेकिन वो प्रासंगिक नही हैं कब तक गर्भगृह की शोभा बढ़ाओगे मोहन आओ न फिर से इन्हें प्रासंगिक बनाने प्रेम से आशिक़ी बने प्रेम की घर वापसी के लिए...!                     -अंकेश वर्मा