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परंपरा...⚔













तुम्हारी ख़ामोशी 

तुम्हें तबाह करेगी
तुम जितना दबोगे
दबाए जाओगे
झुकोगे 
तो वो और झुकायेंगे
अभी तुममे सामर्थ्य है
तुम लड़ सकते हो
अपनी गठीली भुजाओं से
अपनी मजबूत इक्षाशक्ति से
हथियार बना सकते हो
खुद को
और उनके अन्याय को
उखाड़ फेंक सकते हो
याद रखना 
गर ये नही किया
तो आने वाली नस्लें
सवाल पूछेंगी तुमसे
कि तुमने उनके लिए 
वो क्यों नही किया..?
जब तुम कर सकते थे..!
तब तुम अपने पिता को
कोसोगे..
कि उन्होंने तुम्हें
बेहतर संसार क्यों नही दिया..?

                     अंकेश वर्मा

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कभी बँटवारे  तो कभी घर के  भीतरी दीवारों का द्वन्द कभी अपनी अवहेलना तो कभी पिता की तानाशाही से कभी माँ के साथ को अथवा बहन के भीगे नयनों से या अपनी सत्ता स्थापित करने को कई बार खुद से भी बिगड़ते हैं रिश्ते बच्चे जब बड़े हो जाते है घर मे कई घर हो जाते हैं..!                    - अंकेश वर्मा 

स्त्री विमर्श...🍁

रीति-रिवाज व परंपराएं सदैव धनात्मक नही हो सकती , कहीं न कहीं पर ये मनुष्य के लिए विनाशकारी सिद्ध होती हैं और जब बात स्त्रियों की हो तो समाज रीति-रिवाज , परम्पराओं व नैतिक मूल्यों के नाम पर उनके पैरों पर अपनी कसावट और भी मजबूत कर देता है..। स्वतंत्रता के नजरिये से स्त्री कभी भी अपने आप को शक्तिशाली नही महसूस कर पाई , यही कारण है कि स्त्री को " अंतिम उपनिवेश " की संज्ञा दी जाती है...। वहीं दूसरी ओर अगर ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो वहाँ के स्त्रियों का मन स्वतंत्रता की आंच से भी भय खाता है..। उनको दी गई स्वतंत्रता के साथ एक अदृश्य भय हमेशा उनके साथ चलता है और अंततः उसका उपभोग भी एक आज्ञापालन ही होता है...। जहाँ स्त्रियों को स्वतंत्रता प्राप्त भी होती है वहाँ पर भी स्त्री-पुरुष संबंध काफी उलझे हुए होते हैं , जैसा कि पश्चिमी देशों में देखने को भी मिलता है...। दरअसल स्वतंत्र पुरूष यह तय नही कर पा रहा है कि स्वतंत्र स्त्री के साथ कैसे पेश आया जाए , वहीं दूसरी ओर अनेको स्त्रियां भी इस बात से अनभिज्ञ हैं कि अपनी स्वतंत्रता का उपभोग कैसे करें..इसलिए वो कभी -कभी अपने लिए...

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बेशक मैं दुनिया का सबसे अच्छा प्रेमी नही हूँ लेकिन आम के पेड़ों पर दोबारा बौर के आने से पहले अगर तुम आये तो ये देखोगे कि मेरा प्रेम तुम्हें बौर की खुश्बू की याद दिलाएगा.. © Ankesh Verma