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फ़रवरी, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कुछ लोग मिले थे राहों में

कुछ लोग मिले थे राहों में कुछ ख्वाब बुने थे राहों में पर टूटे सपने अपने भी कुछ छूटे सपने अपने भी कब तक उपरि तह से सब जुड़े रहेंगे मुझ जैसों से कब तक होंगी बातें मीठी प्रेम सरीखी मुझ जैसों से सब होते है खेल यहाँ रिश्तों के धागे कच्चे हैं है नही अमानत ये अपनी नही यहाँ सब सच्चे हैं कोई कब तक न मुरझाएगा कोई कब तक जी बहलाएगा इस मंजर को झुक जाना है ये अंत कभी तो आना है ये अंत कभी तो आना है..!                 - अंकेश वर्मा  

उधेड़बुन..🍁

कभी कभी सोचता हूँ काम न मिले वही बेहतर होगा मैं दिनभर मजदूरी कर लूँगा और रात में किसी सड़क किनारे कहीं रोशनी में बैठ लिखूँगा अपने और अपने जैसों की भूख को कि ठंड में सड़क किनारे कैसे सोया जाता है और कैसे न चाहते हुए भी जगना पड़ता है रात भर सवारी को ढोने के लिए ताकि सुबह का खाना नसीब हो पर मुझे लगता है तब भी मैं नियति के सामने एक शर्त रखूँगा कि तुम रोज शाम आओगी चाँदनी की तरह  मेरे माथे को छू  मेरी थकान को हरने..!               - अंकेश वर्मा

अनायास🍁

चाँदनी रातों ने भी अपने लिबास बदल दिए तब हमने भी अपने अहसास बदल दिए अब कौन करे बार-बार इस घर की मरम्मत इसलिए हमने इसके असास बदल दिए कौन रोये इस ज़हां में एक शख्स की खातिर और क्यों रोये ये ज़हां किसी शख्स की खातिर पनाह नसीब नही यहाँ अपनो की बस्ती में ये सोच हमने भी अपने ग़मगुस्सार बदल दिए सुकूँ न मिला ये मख़मूर अपने गुलिस्तां में भी इसलिए हमने अब अपने गुलजार बदल दिए..!                                            - अंकेश वर्मा

ख़्वाब💖

नव नूतन सी उसकी आभा चंचल मृग नयनों वाली नदिया सा बलखाता यौवन गालों पर खिलती लाली सूरत जैसे चन्द्र चाँदनी नागिन सी चोटी उसकी मानसरोवर जैसा तन है पुष्प लता उसकी बाली  परियों की प्रतिच्छाया सी है वो मेरे ख्वाबों वाली..।।                   - अंकेश वर्मा

गाँव💖

गाँव देखने आये हो..! क्या कहा..थोड़ा जोर से कहो.. गाँव पर लिखना भी  चाहते हो..?? ठीक है लिखना जरूर लिखना.. किन्तु मेरी इक फरियाद है.. जब तुम लिखना तो ये जरुर लिखना... कि किस भांति यहाँ पलते है बच्चे गाँव भर के लोगों के हाथों से लिखना की बूढ़े यहाँ भार नही है अपितु परिवार की सबसे खास कड़ी हैं लिखना की माँ यहाँ शब्द न होकर संसार है यहाँ पिता बच्चों को पीटता भी है  क्योंकि उसे उनके सुनहरे कल की चिंता है बहन यहाँ केवल राखी के दिन नही होती बल्कि वह छाया है भाई के जीवन का लिखना वो जो चावल होता है  वो असल मे धान है जो तुमको नही पता लिखना भरी दुपहरी में किसान के टपकते पसीने बताना की बच्चे खप गए है  पढ़ाई और कंचे छोड़ भट्ठे की आंच में बंसी की माँ को भी लिखना  जिसका इकलौता बेटा उसकी दवा के पैसे लेने  गया है शहर उसे बुढ़ापे में अकेला छोड़ लोग मर रहे है बिना अपनी उम्र पूरी किये जिनके घर वालो को ये भी नही है मालूम कि मर्ज क्या थी बताना की यहाँ अब सामन्तवाद नही रहा बस बाबू साहब की शादी में खाने के लिए दिन भर काम करना है गरीब को और सबसे अंत मे दिखाना कि किस भांति यहाँ क

तुम आज आई ही हो तो सुनती जाओ..🍁

तुम आज आई ही हो तो मेरी भी कुछ सुनती जाओ मेरे हसरतों के कुछ अनकहे किस्से सुनती जाओ कभी कभी ये रातें भी दिल में काटें सी चुभती हैं तुम्हारी बेरुखी ही सही इन्हें थोड़ा तुम भी चुनती जाओ ये गमगीन शामें अब मुझे बहुत रुलाती हैं भीड़ जब-तब दिल का तपन बढ़ाती है खुशियां तो रूठी है हमसे बस दुख ही बचे है तुम जाओगी ये तय है , थोड़े दुख तुम भी लेती जाओ अहसान फरामोश से लगते है ये ज़माने वाले सुनाते तो है , सुनते नही मेरी ये ज़माने वाले मेरी खुशी और दुख की ये परवाह नही करते मीठे बोल न सही माना , तुम थोड़ा झगड़ा ही करती जाओ बेमतलब का झगड़ना और फिर मान जाना पल भर में अब हमसे ये ना होगा तुम ये भी सुनती जाओ मेरी हसरतों के कुछ अनकहे किस्से सुनती जाओ तुम आज आई हो तो मेरी भी कुछ सुनती जाओ..!!                                       -अंकेश वर्मा

Promise Day💖

शाम की खामोशी को अचानक फोन के रिंगटोन ने तोड़ दिया.... नम्बर अनजाना था मगर अपनेपन का एहसास करा रहा था... हेलो कौन..? तुम भुल्लकड़ होते जा रहे हो..! नही ऐसा नही है..! अच्छा पहचाना की नाम बताऊँ..? नही इसकी जरूरत नही है आज भी  तुम्हारी आवाज तुम्हारा परिचय दे रही है..! ओह ये तो अजूबा है.! तुम जो भी समझो..! आज भी अकेलेपन ने घेर रखा है क्या..? हाँ कुछ ऐसा ही है...! तुम बड़े अजीब हो गए हो..! हाँ शायद..। क्यों..? पता नही शायद फितरत हो गई है अब...खैर और सुनाओ..? आज एक साल बाद याद कैसे आ गई..? वादा जो करना था हर साल की तरह..! कैसा वादा.? यही की अगले Promise Day पर मैं तुम्हें कॉल नही करूँगी..!! (दोनों तरफ थोड़ी देर के लिए सन्नटा छा गया और फिर....)                      - अंकेश वर्मा

साँझ💖

किसी अनजान सुखन को भर उठता है मन चांदना के पहर से ही, गुजरता है उन्मादी सूर्य उल्लास की खोज में चाँद से मिलने की खातिर, यूँ साँझ उतरती है दिल में... मानो ओस की बूंदे भिगो रही हों धरा के वक्ष स्थल पर लेटी दूब को..! मिल रही हो बेजान प्रेयसी जैसे स्वप्न में अपने प्रियतम से..! -अंकेश वर्मा

तुम्हारे अहसास💖

बंद आंखों के अंधेरे में देखा है मैंने ये जागता सपना तुम मिलती भी हो और बिना देखे चली जाती हो हाँ महसूस तो करता हूँ मैं सुहाने अहसास तुम्हारे आहट के जो होते तो हैं और नही भी बिखरी जुल्फ़े लिए  तुम सामने आती हो स्याह परछाई की तरह गुम भी हो जाती हो तुम दिखती तो हो  मगर न जाने क्यों दूर जाते धुँए सी मतवाला मैं कब सो जाता हूँ जागते-जागते याद तो है पर भूल जाता तुम्हे देखने के लिए..।।               - अंकेश वर्मा

जन्मदिन विशेष🍁

धरती क्या तू सच मे न रोई..?? मुझ जैसे को पाकर..?? क्या सोच लिया था तूने भी मेरे ही भाँति की जो होगा अच्छा ही होगा..! क्या तुझे नही लगा था कभी की मेरा जीवन ही है निर्रथक  जैसे मुझे लगता है..! क्या दिखा नही अलगाव तुझे रिश्तों के भीतर या बुझी वेदना दिखी नही  औरों के खातिर क्या आँख मूँद लिए थे तूने प्रेम संबंधों से तूने तो देखें होंगे बहुतेरे कालखंड तू तो परख पाती होगी आने वाले कल को  धरती तू फिर भी न रोई...?? सच ही तो है.. कितने आये और गए बहुततेरे होंगे मेरे जैसे कितनों को तू सोचेगी कितनों की खातिर रोयेगी पर फिर भी मन नही मानता मेरा न जाने क्यों कौंध रहा है लंबे अरसे से क्या सच में तुझे ... हम जैसों की परवाह नही होती...??                   - अंकेश वर्मा x