कुछ लोग मिले थे राहों में कुछ ख्वाब बुने थे राहों में पर टूटे सपने अपने भी कुछ छूटे सपने अपने भी कब तक उपरि तह से सब जुड़े रहेंगे मुझ जैसों से कब तक होंगी बातें मीठी प्रेम सरीखी मुझ जैसों से सब होते है खेल यहाँ रिश्तों के धागे कच्चे हैं है नही अमानत ये अपनी नही यहाँ सब सच्चे हैं कोई कब तक न मुरझाएगा कोई कब तक जी बहलाएगा इस मंजर को झुक जाना है ये अंत कभी तो आना है ये अंत कभी तो आना है..! - अंकेश वर्मा
प्रेम, समाज और कल्पना का समागम..