धरती क्या तू सच मे न रोई..??
मुझ जैसे को पाकर..??
क्या सोच लिया था
तूने भी मेरे ही भाँति
की जो होगा अच्छा ही होगा..!
क्या तुझे नही लगा था कभी
की मेरा जीवन ही है निर्रथक
जैसे मुझे लगता है..!
क्या दिखा नही अलगाव तुझे
रिश्तों के भीतर
या बुझी वेदना दिखी नही
औरों के खातिर
क्या आँख मूँद लिए थे तूने
प्रेम संबंधों से
तूने तो देखें होंगे
बहुतेरे कालखंड
तू तो परख पाती होगी
आने वाले कल को
धरती तू फिर भी न रोई...??
सच ही तो है..
कितने आये और गए
बहुततेरे होंगे मेरे जैसे
कितनों को तू सोचेगी
कितनों की खातिर रोयेगी
पर फिर भी
मन नही मानता मेरा
न जाने क्यों कौंध रहा है लंबे अरसे से
क्या सच में तुझे ...
हम जैसों की परवाह नही होती...??
- अंकेश वर्मा
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