गाँव देखने आये हो..!
क्या कहा..थोड़ा जोर से कहो..
गाँव पर लिखना भी चाहते हो..??
ठीक है लिखना जरूर लिखना..
किन्तु मेरी इक फरियाद है..
जब तुम लिखना तो ये जरुर लिखना...
कि किस भांति यहाँ पलते है बच्चे
गाँव भर के लोगों के हाथों से
लिखना की बूढ़े यहाँ भार नही है
अपितु परिवार की सबसे खास कड़ी हैं
लिखना की माँ यहाँ शब्द न होकर संसार है
यहाँ पिता बच्चों को पीटता भी है
क्योंकि उसे उनके सुनहरे कल की चिंता है
बहन यहाँ केवल राखी के दिन नही होती
बल्कि वह छाया है भाई के जीवन का
लिखना वो जो चावल होता है
वो असल मे धान है जो तुमको नही पता
लिखना भरी दुपहरी में किसान के टपकते पसीने
बताना की बच्चे खप गए है
पढ़ाई और कंचे छोड़ भट्ठे की आंच में
बंसी की माँ को भी लिखना
जिसका इकलौता बेटा उसकी दवा के पैसे लेने
गया है शहर
उसे बुढ़ापे में अकेला छोड़
लोग मर रहे है बिना अपनी उम्र पूरी किये
जिनके घर वालो को ये भी नही है मालूम कि मर्ज क्या थी
बताना की यहाँ अब सामन्तवाद नही रहा
बस बाबू साहब की शादी में खाने के लिए
दिन भर काम करना है गरीब को
और सबसे अंत मे दिखाना कि
किस भांति यहाँ की घटिया राजनीति
खा गई है है गाँव के सुनहरे सपनों को
गर ये सब लिख सको तुम
इन संवेदनाओ के साथ
तो लिखना गाँव को कागज पर
नही तो जाकर खोजना गाँव को शहर में
किसी बड़े ऑफिस की मोटी फाइल में दबा होगा..।।
- अंकेश वर्मा