उसने हमपर रहमत की हम बिखर गए
रोका-टोका राह शजर* की बिखर गए.।
रोका-टोका राह शजर* की बिखर गए.।
हुए जुनूनी बस्ती-बस्ती डेरा डाला
राह कटीली जंगल घूमे बिखर गए.।
राह कटीली जंगल घूमे बिखर गए.।
उसने की गद्दारी बेशक अपना माना
हममे थी खुद्दारी फिर भी बिखर गए.।
हममे थी खुद्दारी फिर भी बिखर गए.।
साथ रहे और उसके दिल पर जुम्बिश* की
खुद को दिया अज़ाब* और हम बिखर गए.।
खुद को दिया अज़ाब* और हम बिखर गए.।
उसने उनको अपनाया जिनको चाहा
उसकी जीनत उसकी जन्नत हम बिखर गए.।
उसकी जीनत उसकी जन्नत हम बिखर गए.।
सुना बने वो जिनपर उसने हाथ रखा
हम ही एक नाक़ाबिल थे सो बिखर गए.।।
हम ही एक नाक़ाबिल थे सो बिखर गए.।।
शजर*- पेड़
जुम्बिश*- हलचल
अज़ाब*- पीड़ा
जुम्बिश*- हलचल
अज़ाब*- पीड़ा
- अंकेश वर्मा