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गज़ल..🍁



उसने हमपर रहमत की हम बिखर गए
रोका-टोका राह शजर* की बिखर गए.।

हुए जुनूनी बस्ती-बस्ती डेरा डाला
राह कटीली जंगल घूमे बिखर गए.।

उसने की गद्दारी बेशक अपना माना
हममे थी खुद्दारी फिर भी बिखर गए.।

साथ रहे और उसके दिल पर जुम्बिश* की
खुद को दिया अज़ाब* और हम बिखर गए.।

उसने उनको अपनाया जिनको चाहा
उसकी जीनत उसकी जन्नत हम बिखर गए.।

सुना बने वो जिनपर उसने हाथ रखा
हम ही एक नाक़ाबिल थे सो बिखर गए.।।

शजर*- पेड़
जुम्बिश*- हलचल
अज़ाब*- पीड़ा


                              - अंकेश वर्मा

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