उजाड़ गमजदा हयात* में अरमान ढूंढिये
अन्ज़* पर मुम्ताज़ सा कोई निगहबान ढूंढिये
गर हिज्र ही है आपकी अज़ाब* जान लो
अग्यार* में भी अपना मेहमान ढूंढिये
ला रही हों कराह जो जवानी की सलवटें
नौजवान सा कोई पासबान* ढूंढिये
है यही लोगों का बहिस्त* आज कल
एक फ़रामोश कोई मेजबान ढूंढिये
तब प्यालों में तमाम उम्र काट दी तुमने
अब ताराज* मापने को मीज़ान* ढूंढिये.।
ये गज़लकारी भी अब एक रोज़गार है
वाह वाह करने को मेहरबान ढूंढिये..।।
हयात*- जिंदगी / अन्ज़*- धरती
हिज्र*- विरह / अज़ाब*- पीड़ा
अग्यार*- अजनबी / पासबान*- रक्षक
बहिस्त*- जन्नत / ताराज*- बरबादी
मीज़ान*- तराजू
-अंकेश वर्मा