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मार्च, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

इप्रेक्💖

लालकिले के प्रांगण में विचरते हुए वो मुझे इतिहास के कुछ रोचक किस्से सुना रही थी...  जिनमें कुछ सच तो कुछ झूठ थे... सब कुछ जानने के बावजूद भी मैं एक अच्छे साथी के दायित्व का निर्वहन करते हुए उसकी झूठी बातों को नजरअंदाज कर रहा था... पर एक बात थी जो मुझे बार-बार विचलित कर रही थी... दरअसल पूरी यात्रा की दौरान उसकी रेशमी जुल्फ़े उसके माथे पर आ जाती जिसे वो हर बार झटक देती... इसी बीच उसने अकबर के मयूर सिंहासन से जुड़े किस्से सुनने आरम्भ किये जिसे मैं सुनते हुए भी अनसुना कर रहा था.... असल में मयूर सिंहासन का नाम सुनते ही मेरे जेहन में शाहजहां की एक धुंधली तस्वीर उभरी.... और मैं आवारों की भांति उसकी जुल्फों में खोया निकल पड़ा लालकिला के रास्ते इस मुमताज के लिए एक नए ताजमहल के निर्माण को.....                                 -अंकेश वर्मा

इप्रेक्💖

पार्क में टहलते टहलते अचानक उसे फोटोग्राफी का भूत सवार हो जाता... पत्तियों को पकड़कर यूँ फ़ोटो खींचती मानो पत्ती न हो किसी सुपरस्टार का चेहरा हो... मैं उसकी इन क्रियाकलापों से दूर खो जाता उसकी पत्तियों से  हम दोनों के लिए पंचवटी में एक कुटिया बनाने... अचानक आवाज आती कैसा है ये... मैं भी अपनी यादों के सागर में हिलोरे मारता जवाब  देता संसार में इससे सुंदर कुछ हो ही नही सकता....।। (वह मान लेती कि मैंने फ़ोटो की प्रशंसा की है)                                   -अंकेश वर्मा   

अच्छा सुनो....😑

कभी खुद को वक्त के तराजू में रखना फिर गौर करना कहीं तुम भी वही तो नही जिनके तौर-ए-जिंदगी को तुम कोसते हो तुम्हारे मुस्कान पर हजारों रुसवाईयाँ शर्माती है पर खुद को इनकी आड़ में कब छिपाओगे अपने झूठे जज़्बात और उलझे रिश्तों को खुद से दरकिनार करना और फिर सोचना कहीं उसे सब पता तो नही है बगैर तुम्हारे कुछ भी बताए नवीनता हमेशा उल्लास लाती है मगर पुराने घर के प्यार को झुठलाया नही जाता इसलिए निपट अकेले हो जिस क्षण तब खुद के भीतर झाँकना और फिर महसूस करना कहीं दुनिया को खुद में समेटने के चक्कर में तुम अकेले तो नही होते जा रहे  रिश्तों का बनावटीपन ज़ेहन में रखना ये छिपकर भी आँखो से ओझल नही होता ये अलग बात है कि किसी को उसे देखना नही होता अपने ख़्यालों के पन्ने पलटना और फिर देखना वो जो सिर्फ तुम्हारे थे  जिन पर सिर्फ तुम्हारा अधिकार था एक-एक कर तुमसे दूर क्यों चले गए..!                           - अंकेश वर्मा

रेहाना..🍁

दोपहर का वक्त और धूप बादलों के साथ लुकाछिपी खेल रही थी..! दो दिन से बारिश के आसार थे जो अब तक आसार ही बने हुए थे हकीकत से बहुत दूर । बाहर नीम पर कौवे की काँव काँव दोपहर को और भी कर्कश बना रही थी । सरकारी नल के नीचे बैठी रेहाना बर्तन धुलने के साथ चेहरे पर आती जुल्फों को एक ताल से हटाती जा रही थी । कालिख लगे हाथों से बार बार बालों को हटाने के क्रम में हर बार उसके गोरे मुखड़े पर कालिख लग जाती जो उसके चेहरे पर इस समय नजरबट्टू का काम कर रही थी । रेहाना के परिवार में कुल आठ जन थे , उसके अब्बू-अम्मी ,  तीन भाई और उसे लेकर तीन बहन । परिवार की स्थिति नाजुक ही कही जाएगी , पिता दो बेटों के साथ लुधियाना में कपड़े सिलते थे , बड़ा बेटा मेराज गांव का चौकीदार था जिसे हजार रुपये मिलते थे और साथ ही साथ वह गांव के बाहुबली सोमेश सिंह की गाड़ी चलाता था..। घर का खर्चा बस किसी तरह से चल रहा था । बर्तन धोती रेहाना को अचानक स्मरण हुआ कि कल झाड़ू लगते समय चूल्हा टूट गया था जिसे सही करने के लिए तालाब से चिकनी माटी भी लाना है । माँ होती तो शायद आज उसका काम बंट जाता लेकिन वो परिवार के अन्य लोगों के साथ

नजरिया...🍁

नीति -अनीति के द्वंद्व में  मन शंकित हो जाता है भला जुए के खेल में भी  कौन नीति को रखता है शकुनि ने टेढ़ी चल चली तो युधिष्ठिर को हट जाना था छोड़ जुए का खेल उन्हें  उस संगत से उठ जाना था यदि गलत थे कौरव  तो कौन युधिष्ठिर   उचित ही करते जाते थे राज्य मोह में भाई-पत्नी  तक को रखते जाते थे गर नीति स्वरूप सब भाई पर  युधिष्ठिर का हक बनता था तो नीति दृष्टि से भाई की  रक्षा का दायित्व भी पड़ता था सत्य और नीति के पथप्रदर्शक  भाई-पत्नी के जंगी थे यदि कौरव अनीति के साधक थे तो युधिष्ठिर भी उनके संगी थे..!                   - अंकेश वर्मा

सफ़र जारी है....💖

अनायास ही घटती है कई घटनाएं और बनती है जीवन की खास स्मृतियां पर वो बनती हैं हमारा इतिहास और बदलती है अंतिम पड़ाव के उलझते चमकीले दिनों के भूगोल को इसलिए मैंने अपने जीवन के  कुछ पन्ने कोरे छोड़े हैं कुछ सपने मैंने उनके लिए बुने हैं सोचता हूँ कि  रंगीन कागज के  छोटे टुकड़ों में बांटकर उनको अपने खाली पन्नों में भर दूँगा..।।                   - अंकेश वर्मा

रणनीति...🍁

वो फिर आएंगे तुम्हे बरगलाने राष्ट्रवादी बन सुनहरे सपने दिखाने धर्म की जंजीरों में जकड़ने तुम्हें साठ साल का गुलाम बताने वो आएंगे तुम्हें अपने सिद्धांतों से खरीदने लेकिन तुम अड़े रहना चंद पैसों के लिए बिकना नहीं झुकना नही उनके बाहुबल के सामने मत देना उनका साथ  देना उनका जो जुड़े हुए है तुमसे जो रहेंगे तुम्हारे बीच  तुम्हारे अपने बन कुछ और भी आएंगे  साम्प्रदायिकता का डर दिखाने दिखाएंगे दूसरों के तानाशाही को खुद को मासूम बताएंगे खुद के काम न दिखाकर दिखाएंगे दूसरों की गलतियों को पर तुम अड़े रहना न बनना फिर से गुलाम  न जकड़ना खुद को  सामंतवाद की बेड़ियों में कुछ ऐसे भी आएंगे जो जातियों के नाम पर जोड़ेंगे दिखाएंगे तुम्हारी गरीबी और भुखमरी समाज मे तुम्हारी हैसियत बोलेंगे तुम्हारे अधिकारों के लिए बताएंगे तुमको और खुद को नीच दिखाएंगे अधिकारों के सपने  फिर खुद ही निगल लेंगे उन्हें तुम इनके चक्करों में न पड़ना धर्म से इतर , जाति से इतर विचारधारा और चिन्हों को भूल किसी पूर्वाग्रह से प्रभावित हुए बिना तुम देखना केवल  अपने सुनहरे भविष्य को देखना उनके अतीत को तुलना करना

नारी केवल श्रद्धा नही है...🍁

नारी खोजती है जीवन उजाड़ वन रूपी घरों में  नारी दिखलाती है पथ अपने बच्चों को नारी दौड़ती भी है समय और प्रतियोगिता के दौड़ में नारी बस नारी नही है सृजन है एक नए संसार का एक नए भविष्य का वो घर को घर बनाती है वो जलाती है खुद को परिवार की आग को शांत करने को वो माँ है बहन है बेटी और पत्नी भी और हर रूप में पूजनीय है नारी आदि का भी रूप है इसलिए तुम थोड़ा-सा गलत से प्रसाद नारी केवल श्रद्धा नही है नारी अनंत भी है..!                       - अंकेश वर्मा

मेरे कमरे को शिकायत रहती है....

चटकीले रंगों और स्याह रात से शालीन और बेबुनियादी बात से बिना चाय के सुबह के शुरुआत से मेरे कमरे को शिकायत रहती है हैरान और बोझिल लोगों से बिदकते और ख़ामोश जुबानों से और मेरे खुद के एकाकीपन से भी मेरे कमरे को शिकायत रहती है बेतरतीब न हो सलीके से रखे कपड़ों से कलमों का कम होना या न होना और मेज पर हिन्दी उपन्यास की गैरमौजूदगी से मेरे कमरे को शिकायत रहती है जब दिन भर गुम हो शाम को वापस आता हूँ जब बिना वजह मैं आधी रात तक जगता हूँ  बिना वजह मौसम को कोसने से भी मेरे कमरे को शिकायत रहती है..!                                - अंकेश वर्मा