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रणनीति...🍁

वो फिर आएंगे तुम्हे बरगलाने
राष्ट्रवादी बन सुनहरे सपने दिखाने
धर्म की जंजीरों में जकड़ने
तुम्हें साठ साल का गुलाम बताने
वो आएंगे तुम्हें अपने सिद्धांतों से खरीदने
लेकिन तुम अड़े रहना
चंद पैसों के लिए बिकना नहीं
झुकना नही उनके बाहुबल के सामने
मत देना उनका साथ 
देना उनका जो जुड़े हुए है तुमसे
जो रहेंगे तुम्हारे बीच 
तुम्हारे अपने बन
कुछ और भी आएंगे 
साम्प्रदायिकता का डर दिखाने
दिखाएंगे दूसरों के तानाशाही को
खुद को मासूम बताएंगे
खुद के काम न दिखाकर
दिखाएंगे दूसरों की गलतियों को
पर तुम अड़े रहना
न बनना फिर से गुलाम 
न जकड़ना खुद को 
सामंतवाद की बेड़ियों में
कुछ ऐसे भी आएंगे
जो जातियों के नाम पर जोड़ेंगे
दिखाएंगे तुम्हारी गरीबी और भुखमरी
समाज मे तुम्हारी हैसियत
बोलेंगे तुम्हारे अधिकारों के लिए
बताएंगे तुमको और खुद को नीच
दिखाएंगे अधिकारों के सपने 
फिर खुद ही निगल लेंगे उन्हें
तुम इनके चक्करों में न पड़ना
धर्म से इतर , जाति से इतर
विचारधारा और चिन्हों को भूल
किसी पूर्वाग्रह से प्रभावित हुए बिना
तुम देखना केवल 
अपने सुनहरे भविष्य को
देखना उनके अतीत को
तुलना करना और फिर चुनना
किसी एक को
जो दे सके तुम्हे निवाला 
और अच्छी शिक्षा भी
जो पैदा कर सके रोजगार
तुम्हारे और तुम्हारे अपनो के लिए
जो समझे तुम्हें अपना 
बिना वोट बैंक की चिंता किए..!

                    - अंकेश वर्मा

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घर मे घर..🍁

कभी बँटवारे  तो कभी घर के  भीतरी दीवारों का द्वन्द कभी अपनी अवहेलना तो कभी पिता की तानाशाही से कभी माँ के साथ को अथवा बहन के भीगे नयनों से या अपनी सत्ता स्थापित करने को कई बार खुद से भी बिगड़ते हैं रिश्ते बच्चे जब बड़े हो जाते है घर मे कई घर हो जाते हैं..!                    - अंकेश वर्मा 

स्त्री विमर्श...🍁

रीति-रिवाज व परंपराएं सदैव धनात्मक नही हो सकती , कहीं न कहीं पर ये मनुष्य के लिए विनाशकारी सिद्ध होती हैं और जब बात स्त्रियों की हो तो समाज रीति-रिवाज , परम्पराओं व नैतिक मूल्यों के नाम पर उनके पैरों पर अपनी कसावट और भी मजबूत कर देता है..। स्वतंत्रता के नजरिये से स्त्री कभी भी अपने आप को शक्तिशाली नही महसूस कर पाई , यही कारण है कि स्त्री को " अंतिम उपनिवेश " की संज्ञा दी जाती है...। वहीं दूसरी ओर अगर ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो वहाँ के स्त्रियों का मन स्वतंत्रता की आंच से भी भय खाता है..। उनको दी गई स्वतंत्रता के साथ एक अदृश्य भय हमेशा उनके साथ चलता है और अंततः उसका उपभोग भी एक आज्ञापालन ही होता है...। जहाँ स्त्रियों को स्वतंत्रता प्राप्त भी होती है वहाँ पर भी स्त्री-पुरुष संबंध काफी उलझे हुए होते हैं , जैसा कि पश्चिमी देशों में देखने को भी मिलता है...। दरअसल स्वतंत्र पुरूष यह तय नही कर पा रहा है कि स्वतंत्र स्त्री के साथ कैसे पेश आया जाए , वहीं दूसरी ओर अनेको स्त्रियां भी इस बात से अनभिज्ञ हैं कि अपनी स्वतंत्रता का उपभोग कैसे करें..इसलिए वो कभी -कभी अपने लिए...

गज़ल..🍁

उसने हमपर रहमत की हम बिखर गए रोका-टोका राह शजर* की बिखर गए.। हुए जुनूनी बस्ती-बस्ती डेरा डाला राह कटीली जंगल घूमे बिखर गए.। उसने की गद्दारी बेशक अपना माना हममे थी खुद्दारी फिर भी बिखर गए.। साथ रहे और उसके दिल पर जुम्बिश* की खुद को दिया अज़ाब* और हम बिखर गए.। उसने उनको अपनाया जिनको चाहा उसकी जीनत उसकी जन्नत हम बिखर गए.। सुना बने वो जिनपर उसने हाथ रखा हम ही एक नाक़ाबिल थे सो बिखर गए.।। शजर*- पेड़ जुम्बिश*- हलचल अज़ाब*- पीड़ा                               - अंकेश वर्मा