पार्क में टहलते टहलते अचानक उसे फोटोग्राफी का भूत सवार हो जाता...
पत्तियों को पकड़कर यूँ फ़ोटो खींचती मानो पत्ती न हो किसी सुपरस्टार का चेहरा हो...
मैं उसकी इन क्रियाकलापों से दूर खो जाता उसकी पत्तियों से हम दोनों के लिए पंचवटी में एक कुटिया बनाने...
अचानक आवाज आती कैसा है ये...
मैं भी अपनी यादों के सागर में हिलोरे मारता जवाब देता संसार में इससे सुंदर कुछ हो ही नही सकता....।।
(वह मान लेती कि मैंने फ़ोटो की प्रशंसा की है)
-अंकेश वर्मा
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