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रेहाना..🍁

दोपहर का वक्त और धूप बादलों के साथ लुकाछिपी खेल रही थी..!
दो दिन से बारिश के आसार थे जो अब तक आसार ही बने हुए थे हकीकत से बहुत दूर ।
बाहर नीम पर कौवे की काँव काँव दोपहर को और भी कर्कश बना रही थी ।
सरकारी नल के नीचे बैठी रेहाना बर्तन धुलने के साथ चेहरे पर आती जुल्फों को एक ताल से हटाती जा रही थी ।
कालिख लगे हाथों से बार बार बालों को हटाने के क्रम में हर बार उसके गोरे मुखड़े पर कालिख लग जाती जो उसके चेहरे पर इस समय नजरबट्टू का काम कर रही थी ।
रेहाना के परिवार में कुल आठ जन थे , उसके अब्बू-अम्मी ,  तीन भाई और उसे लेकर तीन बहन ।
परिवार की स्थिति नाजुक ही कही जाएगी , पिता दो बेटों के साथ लुधियाना में कपड़े सिलते थे , बड़ा बेटा मेराज गांव का चौकीदार था जिसे हजार रुपये मिलते थे और साथ ही साथ वह गांव के बाहुबली सोमेश सिंह की गाड़ी चलाता था..। घर का खर्चा बस किसी तरह से चल रहा था ।
बर्तन धोती रेहाना को अचानक स्मरण हुआ कि कल झाड़ू लगते समय चूल्हा टूट गया था जिसे सही करने के लिए तालाब से चिकनी माटी भी लाना है ।
माँ होती तो शायद आज उसका काम बंट जाता लेकिन वो परिवार के अन्य लोगों के साथ एक दिन पहले ही मामा के घर शादी में चली गई थी ।
जल्दी-जल्दी बर्तन साफ कर रेहाना ने ओसारे में पड़े तसले को उठा लिया और बुदबुदाते हुए तालाब की ओर चल पड़ी...

- सबको एक साथ ही जाना था मुझे तो नौकरानी रखा है सारा पहाड़ जैसा काम अकेले ही करूँ । ये मौसम भी आज जाने कैसा हुआ पड़ा है और ये कौआ भी न जाने कहाँ से आ गया है ।

सुबह से काम करते करते रेहाना कुढ़ चुकी थी ।
धूप अब तक नही निकली थी और अब बूंदाबांदी के कारण उसकी कोई आशा भी नही थी ।
गेंहू के खेलों से गुजरते हुए रेहाना लगभग अपने मे ही खोई हुई थी , ढेर सारे काम के कारण जिस मानसिक थकान का वो अनुभव कर रही थी खेतों के ओर आकर उसने उसमे कमी महसूस किया...।
अचानक उसे पास के गन्ने में सरसराहट दिखी गांव में ये कोई चौकने वाली बात नही थी उसे लगा कि शायद कोई जानवर होगा लेकिन तभी उसे सोमेश सिंह गन्ने से बाहर आता दिखाई दिया.!
सोमेश सिंह इसी गांव का रहने वाला बाहुबली था जिसके घर रेहाना का भाई गाड़ी चलाता था यह इलाके का एक नम्बर का बदमाश था और रेहाना उसकी हरकतों से अच्छी तरह वाकिफ थी ।
कई महीनों से रेहाना पर सोमेश सिंह की नजर थी , उसे देखते ही रेहाना की घिघ्घी बंध गई ।
उसने तसले को वही फेंका और जितने जोर से भाग सकती थी भागी , उसके दुप्पटे का एक छोर सोमेश के हाथ मे आ गया जिसे उसने झटका दिया ताकि रेहाना गिर जाए पर आज रेहाना की किस्मत भी शायद उसके साथ थी , दुप्पटा उसके गले से निकल गया और और वो सरपट घर की ओर निकल भागी ।
रेहाना अब तक अपने घर से ज्यादा दूर नही आई थी इसलिए जल्द ही वह अपने घर के अंदर थी उसने किवाड़ बन्द किया और रोने लगी ।
ऐसा इसके साथ पहली बार नही हुआ था सोमेश की गंदी नजरो ने कई बार उसका पीछा किया लेकिन वह हर बार उससे बचने में सफल रही ।
घर मे अकेली होने के कारण उसे बहुत डर लग रहा था , शाम तक किसी को बताने और घर से निकलने की उसकी हिम्मत न हुई ।
इधर शराब के नशे में धुत्त सोमेश को न गांव दिख रहा था न ही उसे किसी का डर था , वो भी रेहाना के दरवाजे पर बिना आवाज किये देर शाम तक बैठा रहा ।
शाम को जब रेहाना में थोड़ी हिम्मत आई तो उसने पड़ोसी के यहाँ जाने की सोची , दरवाजे पर सोमेश की उपस्थिति से अनजान रेहाना ने जैसे ही दरवाजा खोला सामने सोमेश को खड़ा पाया ।
इसके पहले की रेहाना संभलती या दरवाजे को फिर से बंद करती सोमेश ने उसे दबोच लिया..।
रेहाना ने मदद के लिए गुहार लगाई तो बगल के घर का रामू मदद के लिए आगे आया लेकिन सोमेश को देखते ही उल्टे पांव वापस लौट गया । वह बिना वजह किसी दूसरे की खातिर सोमेश जैसे बदमाश से झगड़ा मोल नही लेना चाहता था ।
सोमेश ने रेहाना का मुंह दबोचा और उसे लेकर उसी के घर मे घुस गया और अंदर से दरवाजे को बंद कर लिया ।
रेहाना ने लाख मिन्नतें की , ऊपर वाले की दुहाई दी , चीखी- चिल्लाई लेकिन नशे में धुत्त सोमेश ने उसके इज्जत को तार तार कर दिया ।
पड़ोस के रामू ने रेहाना की माँ को फ़ोन करके घटना की जानकारी दी । सारा परिवार चंद घण्टों में वापस घर पहुँच चुका था ।
अगले दिन पूरे गांव में इसी घटना की चर्चा थी हर कोई अपने हिसाब से दबी जुबान में इस जुर्म के लिए सोमेश को गलत ठहरा रहा था मगर खुल कर बोलने की किसी को हिम्मत नही थी ।
रेहाना के पिता ने थाने पर जाकर तहरीर तो दे दी थी लेकिन वे भी इस बाबत बहुत डरे हुए थे । पुलिस के आने से पहले ही सोमेश के बेटे ने मेराज को जान से मारने की धमकी भी दे दी ।
अंत मे जब पुलिस आई तो सारे घर वालों ने मिलकर ये फैसला किया कि तहरीर को वापस ले लिया जाए नही तो बात इससे भी ज्यादा बिगड़ सकती है , साथ ही मेराज सोमेश की गाड़ी भी चलाता था जिससे उसकी नौकरी पर भी खतरा मंडरा रहा था ।
अंत मे परिवार ने तहरीर को वापस ले लिया और पुलिस के सामने ये बयान दे दिया कि उन्होंने सोमेश को झूठे केस में फसाने के लिए ये तहरीर दी थी और वो इसके लिए माफी मांगते है ।
पुलिस ने भी मामले को तूल देने की बजाय मेराज से एक हजार रुपये लेकर मामले को रफा-दफा कर दिया क्योंकि सोमेश सिंह से उन्हें नोटों का बंडल पहले ही मिल चुका था ।
इधर रेहाना रो-रो कर अपने और अपने परिवार को धिक्कार रही थी और उधर उसका भाई मेराज सोमेश की गाड़ी साफ कर रहा था आखिर घर जो तो चलना था..। 
असल में गांवों में लड़की का सुंदर होना या बदसूरत होना दोनों ही अभिशाप है , सुंदर होने पर वे किसी न किसी के पाप का शिकार हो जाती है और बदसूरत होने पर उनके शादी के लिए वर ढूढंने में कठिनाई होती है , गरीब लड़कियों का ज्यादा सुंदर होना और भी नुकसानदायक होता है क्योंकि सारी गंदी नजरें उसी पर ही होती है और उनको बचाने के लिए कोई सहायक भी नही होता ..!
गांव का रहन सहन भी ऐसा है कि कभी शौच के लिए कभी खेतों के काम से या किसी और काम से लड़कियों को घर से बाहर निकलना ही पड़ता है वो केवल घर मे ही नही रह सकती है..!
शहर वालों के लिए ये चौंकने वाली बात हो सकती है कि यहाँ पर ज्यादातर मामलों में लड़की या उसका परिवार बाहुबलियों के डर की वजह से इन अपराधों के खिलाफ आवाज भी नही उठाता..!
ये सच है कि शहरीकरण का का बढ़ता स्वरूप हमारे गांव की संस्कृतियो को नष्ट कर रहा है लेकिन शहरीकरण लड़कियों के पंख फलाने के लिए बेहतर माहौल देने में सफल रहा है..!

                                          - अंकेश वर्मा

टिप्पणियाँ

  1. आपने जिस खूबसूरती के साथ रिहाना और उसके परिवार कि दुख और दर्द को चित्रित किया है,वह बहुत ही सराहनीय है। हम जैसे लोग जो गांव में रहे हैं उनका ऐसी कहानियों से काफी राब्ता रहा है। संवैधानिक लोकतंत्र की आड़ में जो मत्स्य प्रशासन हमारे गांवों में चल रहा है उस के अंत के लिए वाकई बहुत ठोस कदम उठाने की जरूरत है। लेकिन सरकार ने जब-जब ये ठोस कदम उठाए हैं तब-तब वे इतने ठोस निकले हैं कि उठे ही नहीं हैं। इसलिए अब समय आ गया है कि हमें अपने यथेष्ट के लिए और अपनों के यथेष्ट के लिए स्वरचित न्याय-निर्णयन पर आधारित प्रणाली का विकास करना होगा। जो संविधान सम्मत होते हुए व्यावहारिकता के धरातल पर भी पूर्ण रूप से लागू हो। नहीं तो नया भारत केवल आपकी कविता की तरह "फाइलों में रखा एक गांव" बनकर रह जाएगा।

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  2. ऋषि जी हम जुड़ेंगे और लडेंगे भी इस अन्याय की खिलाफ...
    जय हिंद💖

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  3. गांव का यथार्थ जिस ढंग से आपने व्यक्त किया है मन को छू गया ...keep it up!

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