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नजरिया...🍁

नीति -अनीति के द्वंद्व में 
मन शंकित हो जाता है
भला जुए के खेल में भी 
कौन नीति को रखता है
शकुनि ने टेढ़ी चल चली
तो युधिष्ठिर को हट जाना था
छोड़ जुए का खेल उन्हें 
उस संगत से उठ जाना था
यदि गलत थे कौरव 
तो कौन युधिष्ठिर  
उचित ही करते जाते थे
राज्य मोह में भाई-पत्नी 
तक को रखते जाते थे
गर नीति स्वरूप सब भाई पर 
युधिष्ठिर का हक बनता था
तो नीति दृष्टि से भाई की 
रक्षा का दायित्व भी पड़ता था
सत्य और नीति के पथप्रदर्शक 
भाई-पत्नी के जंगी थे
यदि कौरव अनीति के साधक थे
तो युधिष्ठिर भी उनके संगी थे..!

                 - अंकेश वर्मा

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इप्रेक्💖

लालकिले के प्रांगण में विचरते हुए वो मुझे इतिहास के कुछ रोचक किस्से सुना रही थी...  जिनमें कुछ सच तो कुछ झूठ थे... सब कुछ जानने के बावजूद भी मैं एक अच्छे साथी के दायित्व का निर्वहन करते हुए उसकी झूठी बातों को नजरअंदाज कर रहा था... पर एक बात थी जो मुझे बार-बार विचलित कर रही थी... दरअसल पूरी यात्रा की दौरान उसकी रेशमी जुल्फ़े उसके माथे पर आ जाती जिसे वो हर बार झटक देती... इसी बीच उसने अकबर के मयूर सिंहासन से जुड़े किस्से सुनने आरम्भ किये जिसे मैं सुनते हुए भी अनसुना कर रहा था.... असल में मयूर सिंहासन का नाम सुनते ही मेरे जेहन में शाहजहां की एक धुंधली तस्वीर उभरी.... और मैं आवारों की भांति उसकी जुल्फों में खोया निकल पड़ा लालकिला के रास्ते इस मुमताज के लिए एक नए ताजमहल के निर्माण को.....                                 -अंकेश वर्मा

हमारे किस्से..🍁

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विफलता २

 कुछ पुण्य न अर्जित किया  कुछ साध्य साधन चुक गए कुछ सुरम्य दिन भी  दीपक किनारे छिप गए देखता हूँ वक्त बीते  मैं कहाँ था सोचता हो जीव कोई मैं उसे गिद्धों समान नोचता स्वयं, स्वयं को देखकर भ्रमित हो जाता हूँ रत्न सारे हारता हूँ...२ x