ये मैं कैसे व्यूह में उतर गया वक्त ने मारा या मैं सुधर गया तेरी मोहलत दरियादिली थी तेरी रुसवाई से मैं बिखर गया मेरे दोस्त ने पूछा था तेरे इश्क़ को मैं टूट गया था इसलिए मुकर गया तुझसे मुलाकातें कभी रास न आई सो न तेरे पास ठहरा न घर गया जहाँ से परिंदे तेरी खबर लाते थे मैं वक्त का मारा इधर गया उधर गया तेरी सांसों की दरीचे की खोज में रहा तेरे साथ को मचला मैं जिधर गया तुझे न देखा तो पीर आंखों में उतर आई तुझे सोचा तो गला भर गया..। © अंकेश कुमार वर्मा
प्रेम, समाज और कल्पना का समागम..