रूपहले पर्दे पर नए किरदार दिखते हैं
कई साथी तो कई गद्दार दिखते हैं
कई साथी तो कई गद्दार दिखते हैं
जहाँ में हैं अज़ीम तो रक़ीब भी हैं
इधर वहसी तो उधर खुद्दार दिखते हैं
इधर वहसी तो उधर खुद्दार दिखते हैं
जिनके शख़्सियत में ज़मीर शामिल ही नही
सियासत में वो ही सरदार दिखते हैं
सियासत में वो ही सरदार दिखते हैं
घर की साख पर लगे बंटा तो बंधती है घिघ्घी
चुनावों में वो भी जोरदार दिखते हैं
चुनावों में वो भी जोरदार दिखते हैं
गरीब आदमी हमेशा गलत नही होता मख़मूर
वो भूख ही है जिससे कसूरवार दिखते हैं
वो भूख ही है जिससे कसूरवार दिखते हैं
कौन चाहता है घर से दूर दूसरों की चाकरी
औंधी आँखों मे देखो घर-बार दिखते हैं
औंधी आँखों मे देखो घर-बार दिखते हैं
सब कुछ है शहर में बस इंशा नही रहे
गाँवों में देखोगे हर बार दिखते हैं
रूपहले पर्दे पर...
गाँवों में देखोगे हर बार दिखते हैं
रूपहले पर्दे पर...
© Ankesh Verma