सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

वीर शिखंडी के घेरे में...🍁

वीर शिखंडी के घेरे में
सजी चौखटों से उठते कुछ
निष्ठुर पौरुष देखे हैं..।

काल अमर कर निज कर्मों से
व्याध-गान को अपनाने को
खुले केश सी बिंधी जटायें
वचनों-वचनों मर जाने को
सत्ता की भूखों में तपती
लाखों बृहलाएँ देखे हैं
वीर शिखंडी के घेरे में
सजी चौखटों से उठते कुछ
निष्ठुर पौरुष देखे हैं..।

हाथ कटारें तीखी लेकर
सूर्य-तपिश को कर शर्मिंदा
नरमुंडों की सजी थाल से
प्रकट हो रहे मुर्दा-जिंदा
सिंहनाद से गर्जन करते
शौर्य के मंजर देखे हैं
वीर शिखंडी के घेरे में
सजी चौखटों से उठते कुछ
निष्ठुर पौरुष देखें हैं..।

राह सजीली पत्थर बनते
वक्त-वक्त शर्मिंदा करते
जीवन के विकराल समर में
पतित आश की जुगनू बनते
स्याह सी मालिन तलवारों संग
धर्मों के रक्षक देखे हैं
वीर शिखंडी के घेरे में
सजी चौखटों से उठते कुछ
निष्ठुर पौरुष देखें हैं....।

© Ankesh Verma

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

घर मे घर..🍁

कभी बँटवारे  तो कभी घर के  भीतरी दीवारों का द्वन्द कभी अपनी अवहेलना तो कभी पिता की तानाशाही से कभी माँ के साथ को अथवा बहन के भीगे नयनों से या अपनी सत्ता स्थापित करने को कई बार खुद से भी बिगड़ते हैं रिश्ते बच्चे जब बड़े हो जाते है घर मे कई घर हो जाते हैं..!                    - अंकेश वर्मा 

गज़ल..🍁

उसने हमपर रहमत की हम बिखर गए रोका-टोका राह शजर* की बिखर गए.। हुए जुनूनी बस्ती-बस्ती डेरा डाला राह कटीली जंगल घूमे बिखर गए.। उसने की गद्दारी बेशक अपना माना हममे थी खुद्दारी फिर भी बिखर गए.। साथ रहे और उसके दिल पर जुम्बिश* की खुद को दिया अज़ाब* और हम बिखर गए.। उसने उनको अपनाया जिनको चाहा उसकी जीनत उसकी जन्नत हम बिखर गए.। सुना बने वो जिनपर उसने हाथ रखा हम ही एक नाक़ाबिल थे सो बिखर गए.।। शजर*- पेड़ जुम्बिश*- हलचल अज़ाब*- पीड़ा                               - अंकेश वर्मा

असीमित इच्छाएं ...🍁

तुम्हारे अविश्वास की कालकोठरी में मैं अनहोनी को होनी मानता था तुम्हारा होना सावन का आभासी था मैं तुमसे मिलकर, अपना सर्वस्व खोना चाहता था ठीक उसी भांति, जैसे ओस की बूंद सूखकर खो देती है अपना स्वरूप पुनः सृष्टि के निर्माण को । © ANKESH VERMA