वीर शिखंडी के घेरे में
सजी चौखटों से उठते कुछ
निष्ठुर पौरुष देखे हैं..।
निष्ठुर पौरुष देखे हैं..।
काल अमर कर निज कर्मों से
व्याध-गान को अपनाने को
खुले केश सी बिंधी जटायें
वचनों-वचनों मर जाने को
सत्ता की भूखों में तपती
लाखों बृहलाएँ देखे हैं
वीर शिखंडी के घेरे में
सजी चौखटों से उठते कुछ
निष्ठुर पौरुष देखे हैं..।
व्याध-गान को अपनाने को
खुले केश सी बिंधी जटायें
वचनों-वचनों मर जाने को
सत्ता की भूखों में तपती
लाखों बृहलाएँ देखे हैं
वीर शिखंडी के घेरे में
सजी चौखटों से उठते कुछ
निष्ठुर पौरुष देखे हैं..।
हाथ कटारें तीखी लेकर
सूर्य-तपिश को कर शर्मिंदा
नरमुंडों की सजी थाल से
प्रकट हो रहे मुर्दा-जिंदा
सिंहनाद से गर्जन करते
शौर्य के मंजर देखे हैं
वीर शिखंडी के घेरे में
सजी चौखटों से उठते कुछ
निष्ठुर पौरुष देखें हैं..।
सूर्य-तपिश को कर शर्मिंदा
नरमुंडों की सजी थाल से
प्रकट हो रहे मुर्दा-जिंदा
सिंहनाद से गर्जन करते
शौर्य के मंजर देखे हैं
वीर शिखंडी के घेरे में
सजी चौखटों से उठते कुछ
निष्ठुर पौरुष देखें हैं..।
राह सजीली पत्थर बनते
वक्त-वक्त शर्मिंदा करते
जीवन के विकराल समर में
पतित आश की जुगनू बनते
स्याह सी मालिन तलवारों संग
धर्मों के रक्षक देखे हैं
वक्त-वक्त शर्मिंदा करते
जीवन के विकराल समर में
पतित आश की जुगनू बनते
स्याह सी मालिन तलवारों संग
धर्मों के रक्षक देखे हैं
वीर शिखंडी के घेरे में
सजी चौखटों से उठते कुछ
निष्ठुर पौरुष देखें हैं....।
सजी चौखटों से उठते कुछ
निष्ठुर पौरुष देखें हैं....।
© Ankesh Verma