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संदेश

ग़ज़ल..🍁

हाथ में हाथ ले साथ चलते हुए जमाने भर की नजरों से संभलते हुए होके तुम में फ़ना मेरी जां सच कहूं तुम्हें चूम ही लूंगा गले मिलते हुए क्या बताऊं तुम कितनी हसीं लग रही  चाँद के करीब से निकलते हुए साथ में मैं रहूं फिर भी दूरी लगे बाँह भर लेना हमको मचलते हुए है हकीकत या है ये सपना कोई ख़्याल आया है यूँ ही टहलते हुए... © Ankesh Verma
हाल की पोस्ट

विफलता २

 कुछ पुण्य न अर्जित किया  कुछ साध्य साधन चुक गए कुछ सुरम्य दिन भी  दीपक किनारे छिप गए देखता हूँ वक्त बीते  मैं कहाँ था सोचता हो जीव कोई मैं उसे गिद्धों समान नोचता स्वयं, स्वयं को देखकर भ्रमित हो जाता हूँ रत्न सारे हारता हूँ...२ x

विफलता १

 मैं पुण्य लेखों के सदृश क्षण एक न विचलित रहा कुछ कर्म को कुकर्म कर क्षण एक ही चर्चित रहा निज मान गौरवगान कर अम्बर तले सोया पड़ा मैं देखता हूँ स्वप्न सारे नर्क देहरी पर खड़ा हाथ मलता ताल पर सीपी किनारे मारता हूँ रत्न सारे हारता हूँ...२

समाज

मेरे जन्म से पहले पड़ोसी ने मांगी मेरे भाई के मृत्यु की दुआ जब हम स्कूल गए तब हमें ताश के पत्तो में उलझाया गया जब होस्टल गए तब हुई कोशिश हमें बर्बाद करने की पिता की नौकरी में कइयों ने डाला अड़ंगा कोशिश की गई हमसे हमारी जमीन छीनने की हमारे अच्छे नम्बर आने पर हमें गालियां दी गई हम वंचित रहे अपने कई संवैधानिक अधिकारों से पिता ने फसलें बोई कुछ ने उन्हें जलाया पिता ने संघर्ष किया कुछ सफलताएं मिली जीवन के कई बसन्त के बाद पिता के संघर्षों और उनकी स्नेहिल छाया में हम अपनी समृद्धि को लालायित हुए हुए उत्सुक व्यवस्थाओं को जानने को, समझने को हमने कई सपने देखे, समृद्धि के सपने, खुशहाली के सपने, हमारे सपने सिर्फ हमारे लेकिन पिताजी को संतोष नही था एक दिन यकायक शिक्षा पर बहस के दौरान उनके माथे पर उभरी थी गंभीरता की रेखाएं उन्होंने कहा था - कि तुम्हारी शिक्षा केवल हमारी समृद्धि के लिए नही अपितु आवश्यक है समाज की प्रगति के लिए भी । मैं अवाक था... कौन सा समाज ? किसकी प्रगति ?

क्षणिकाएं...🍁

गनीमत है कि दिन के हर पहर मुझसे अलग-अलग बर्ताव करते हैं... जैसे पक्षी लौट आते हैं अपने बसेरों पर शाम के ढलते ही तुम भी वापस आ जाती हो मेरे ख्वाबों में मेरी शर्तों के साथ.. उजाले कभी भी मेरे साथी नही रहे यही कारण है कि चांदना के पहर से ही तुम मुझसे दूर होने लगती हो... © अंकेश वर्मा

क्षणिकाएं...🍁

बेशक मैं दुनिया का सबसे अच्छा प्रेमी नही हूँ लेकिन आम के पेड़ों पर दोबारा बौर के आने से पहले अगर तुम आये तो ये देखोगे कि मेरा प्रेम तुम्हें बौर की खुश्बू की याद दिलाएगा.. © Ankesh Verma

में प्रेम माँगने आया हूँ...🍁

कुछ प्रेम भरे आलिंगन हैं कुछ विरह के मारे क्रंदन हैं कुछ यादें मीठी-खट्टी हैं कुछ गीली-पीली चिट्ठी हैं भर झोली उनको लाया हूँ मैं प्रेम मांगने आया हूँ.. कुछ सुप्त व्यथा के वन्दन हैं कुछ प्रेम में भीगे चंदन हैं जेबों में मेरे कंगन हैं जो प्रेम-पगे अभिनंदन हैं दुधमुहे प्रेम का साया हूँ मैं प्रेम मांगने आया हूँ पाने को केवल तुम्हें एक मैं हुआ द्रवित वर्षों अनेक बस केवल तेरा रूप देख खो बैठा हूँ अपना विवेक मैं सहज-व्यक्ति भरमाया हूँ मैं प्रेम मांगने आया हूँ । © अंकेश वर्मा