गनीमत है कि दिन के हर पहर
मुझसे अलग-अलग बर्ताव करते हैं...
जैसे पक्षी लौट आते हैं अपने बसेरों पर
शाम के ढलते ही तुम भी वापस आ जाती हो
मेरे ख्वाबों में मेरी शर्तों के साथ..
उजाले कभी भी मेरे साथी नही रहे
यही कारण है कि चांदना के पहर से ही
तुम मुझसे दूर होने लगती हो...
© अंकेश वर्मा
मुझसे अलग-अलग बर्ताव करते हैं...
जैसे पक्षी लौट आते हैं अपने बसेरों पर
शाम के ढलते ही तुम भी वापस आ जाती हो
मेरे ख्वाबों में मेरी शर्तों के साथ..
उजाले कभी भी मेरे साथी नही रहे
यही कारण है कि चांदना के पहर से ही
तुम मुझसे दूर होने लगती हो...
© अंकेश वर्मा
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