ममता के जूठन की वो तीखी-सब्जी मीठी थी ,
हर गलती की बेलन से एक भरपाई होती थी ।।
यादों की गहरे गोते में एक ठोकर सहसा लगते ही ,
लगा यूँ मानो उलझी-सुलझी एक पहेली जैसी थी ।।
बर्बस अपने ओर बुला ले मनमोहक गुड्डी जैसी ,
सारे दुख के ताप सोख ले एक मीठी थपकी जैसी ,
याद अभागन उस महिला का बार-बार अब आता है ।
दिल मेरा जिस महिला को मां कहकर रोज बुलाता है ।।
© Ankesh Verma
हर गलती की बेलन से एक भरपाई होती थी ।।
यादों की गहरे गोते में एक ठोकर सहसा लगते ही ,
लगा यूँ मानो उलझी-सुलझी एक पहेली जैसी थी ।।
बर्बस अपने ओर बुला ले मनमोहक गुड्डी जैसी ,
सारे दुख के ताप सोख ले एक मीठी थपकी जैसी ,
याद अभागन उस महिला का बार-बार अब आता है ।
दिल मेरा जिस महिला को मां कहकर रोज बुलाता है ।।
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