सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

माँ..🍁

ममता के जूठन की वो तीखी-सब्जी मीठी थी ,
हर गलती की बेलन से एक भरपाई होती थी ।।

यादों की गहरे गोते में एक ठोकर सहसा लगते ही ,
लगा यूँ मानो उलझी-सुलझी एक पहेली जैसी थी ।।

बर्बस अपने ओर बुला ले मनमोहक गुड्डी जैसी ,
सारे दुख के ताप सोख ले एक मीठी थपकी जैसी ,

याद अभागन उस महिला का बार-बार अब आता है ।
दिल मेरा जिस महिला को मां कहकर रोज बुलाता है ।।

© Ankesh Verma

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ग़ज़ल..🍁

हाथ में हाथ ले साथ चलते हुए जमाने भर की नजरों से संभलते हुए होके तुम में फ़ना मेरी जां सच कहूं तुम्हें चूम ही लूंगा गले मिलते हुए क्या बताऊं तुम कितनी हसीं लग रही  चाँद के करीब से निकलते हुए साथ में मैं रहूं फिर भी दूरी लगे बाँह भर लेना हमको मचलते हुए है हकीकत या है ये सपना कोई ख़्याल आया है यूँ ही टहलते हुए... © Ankesh Verma

लाइट कैमरा एक्शन..🍁

दर्शनशास्त्र का एक बड़ा ही खूबसूरत वाक्य है कि दुनिया एक रंगमंच है और सभी मनुष्य इस रंगमंच के कलाकार हैं । हर व्यक्ति को चाहिए कि वो अपने किरदार का निर्वहन उचित तरीके से करे । इस मंच का सबसे रोचक पहलू यह है कि यहां कोई निर्देशक नही होता है जो कलाकारों की भूमिका को बताने का कार्य करता हो , यहां हर कलाकार स्वतंत्र होता है, अपने मनमुताबिक अपना किरदार चुनने को । किरदारों को गढ़ने के लिए आपके लिए कैमरा और स्पॉटलाइट बहुत ज्यादा जरूरी है । आपको चाहिए कि आप हमेशा कैमरा और स्पॉटलाइट के ही घेरे में रहे क्योंकि यही रंगमंच पर आपकी दमदार उपस्थिति को तय करता है । ये कैमरा और स्पॉटलाइट फिल्मों के कैमरा या स्पॉटलाइट से इतर आपके कर्तव्यों और कर्मों के मध्य झूला झूलते हुए प्रतीत होते हैं । आपके कर्तव्य और कर्म ही हैं जो आपको रंगमंच का हीरो और विलेन बताने में सहायक होते हैं । तो प्रयास करते रहिए रंगमंच पर बने रहने के लिए, स्पॉटलाइट में बने रहने के लिए और रंगमंच के प्रमुख कलाकार के रूप में राम,लक्ष्मण,भरत और सीता बनने की खातिर । अगर आप ऐसा नही कर पाते हैं तो आप एक सहायक अभिनेता के रूप में देखे जाते

विफलता २

 कुछ पुण्य न अर्जित किया  कुछ साध्य साधन चुक गए कुछ सुरम्य दिन भी  दीपक किनारे छिप गए देखता हूँ वक्त बीते  मैं कहाँ था सोचता हो जीव कोई मैं उसे गिद्धों समान नोचता स्वयं, स्वयं को देखकर भ्रमित हो जाता हूँ रत्न सारे हारता हूँ...२ x