हे यार जुलाहे संग तेरे
मैं नदी किनारे आऊंगा
तू करते रहना काम वहीं
मैं बंसी मधुर बजाऊंगा
बिसुही के तीरे पड़े पड़े
हम बिरहा मिलकर गाएंगे
कुछ सत्तू होंगे कांदे संग
हम खुशी खुशी से खाएंगे
कुछ मछली होगी पानी में
कुछ नदी किनारे के श्रोते
ऊंचे बम्बे से कूद कूद
हम खूब लगाएंगे गोते
एक पथिक वहां से गुजरेगा
मल्हार के साथ गुजरने को
हम भी चढ़ लेंगे नैया में
नदिया के पार उतरने को
एक बात बता साथी मेरे
इस नदी किनारे नाते को
क्या याद करेगा तू उस पल
मुझे देख शहर को जाते को
मैं आऊंगा वापस पक्का
संग तेरे खूब विचारना है
पर तब तक को अलविदा मित्र
खाली आँचल भी भरना है
बाबा की आंखें सूखी हैं
भाई भी होता व्याकुल है
कुछ नए सफर का स्वप्न सजा
मन मेरा प्रतिपल आकुल है
पर याद रहेगा तो मुझको
देखूंगा तुझको अम्बर में
नदिया का पानी उतरेगा
होकर अदृश्य समंदर में
तेरे हाथों के कठिन ताप सा
मुझको पथ में जलना है
तब तक मीलों मुझको मीलों
मुझको मीलों चलना है ...।
© अंकेश वर्मा
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