मेरी कलम लैला से इत्तेफ़ाक नही रखती
स्याही भी किसी पाजेब की झंकार नही रखती
विरह के गीत मेरे होंठों पर नही आते
खून से सने मेरे खत भी सब सिमट जाते
धड़कनें जोर-जोर से भी तो नही चलती
मशाल-ए-इश्क़ भी दिलो में तो नही जलती
बिफर के नींद मेरी मुझसे शायद रूठ गई
सुहानी शाम मानो बेवफा भी बन ही गई
हसीन ज़ुल्फ़ के छांव अब नही दिखते
अभागे हाथ मेरे प्रेम खत नही लिखते..।
© Ankesh Verma
स्याही भी किसी पाजेब की झंकार नही रखती
विरह के गीत मेरे होंठों पर नही आते
खून से सने मेरे खत भी सब सिमट जाते
धड़कनें जोर-जोर से भी तो नही चलती
मशाल-ए-इश्क़ भी दिलो में तो नही जलती
बिफर के नींद मेरी मुझसे शायद रूठ गई
सुहानी शाम मानो बेवफा भी बन ही गई
हसीन ज़ुल्फ़ के छांव अब नही दिखते
अभागे हाथ मेरे प्रेम खत नही लिखते..।
© Ankesh Verma
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