सुखद समय के आशा पथ पर
चलते-फिरते राह बदलते
नवल सृष्टि को रचते-रचते
अपनों से दूरी हम सहते
नव-अंकुर के रहन-सहन को
दुनिया का हर कोना छाने
पेट भरे , भूखे मन खातिर
तरस गए हम दाने दाने
विधि की विविध व्याख्या करते
जन-जन सम्मुख रीते-दीखे
दुखती रग की टोह में प्रतिदिन
भूजल के माफिक हम सूखे
हर इच्छा को पूरा करने
कौन हिमालय झुक जाएगा
मंजिल को झोली में देने
स्वप्न अभागा कब आएगा.।
© अंकेश वर्मा
चलते-फिरते राह बदलते
नवल सृष्टि को रचते-रचते
अपनों से दूरी हम सहते
नव-अंकुर के रहन-सहन को
दुनिया का हर कोना छाने
पेट भरे , भूखे मन खातिर
तरस गए हम दाने दाने
विधि की विविध व्याख्या करते
जन-जन सम्मुख रीते-दीखे
दुखती रग की टोह में प्रतिदिन
भूजल के माफिक हम सूखे
हर इच्छा को पूरा करने
कौन हिमालय झुक जाएगा
मंजिल को झोली में देने
स्वप्न अभागा कब आएगा.।
© अंकेश वर्मा
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