शिव बटालवी मानते है
की जवानी में मरना
बहुत ज्यादा खूबसूरत है
जवानी में या तो प्रेमी मरते हैं
या फिर मरते हैं
बहुत अच्छे कर्मों वाले
जो जवानी में मरते हैं
वो या तो फूल बनते हैं
या बनते हैं तारे
जवानी में मरना
बुढ़ापे की तंगहाली में
मरने से ज्यादा अच्छा है
लेकिन मैं बुढ़ापे में मरना चाहता हूँ
जब मेरा शरीर मेरा साथ छोड़ने लगे
निवाला निगलते समय
अचानक से वो मेरे गले मे फंस जाए
और मैं मृत्यु को प्राप्त हो जाऊं
या फिर पोपले मुँह को हिलाते-हिलाते
मेरे जबड़े अकड़ जाएं जो कभी ठीक न हों
या शरीर पर मोटी-मोटी नसों के उभरने के बाद
उनमे रक्त दौड़ने से मना कर दे
मैं बच्चों को आधी सदी से ज्यादा समय की
कहानी सुनाते हुए मरना पसन्द करूँगा
या पंछियों को दाना डालते समय
ठोकर लगकर गिरते हुए
नहाते-नहाते नल पर फिसलकर मरना भी
अनोखा नही तो रोचक जरूर होगा
बुढ़ापे में मरना मेरे लिए
ताउम्र खुद को आजमाना माना जाए
मुझे मृत्यु से भय नही
न ही मुझे मृत्यु का इंतजार है
बस मुझे जवानी में मरकर
अपना बुढ़ापा खराब नही करना है ।
© अंकेश कुमार वर्मा
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें