हे सखी अगर वो आएंगे
रूठी बंसी बजवाऊंगी
हो भले अड़े वो जाने को
रुकने को तनिक मनाऊंगी
निकट समय में कान्हा को
मथुरा भी हमे छुड़ाने हैं
कुछ प्रश्न मेरे अनसुलझे हैं
उनके उत्तर भी पाने है
क्या माखन मिश्री का चटक स्वाद
अब भी है उनका मनभावन?
है बहुत बड़ी मथुरा नगरी?
है वृन्दावन जैसा सावन?
क्या बरसाना की याद कभी
लाती है दुख के बादल को?
लाखों दासी से घिरे-घिरे
क्या भूल गए यमुना जल को?
क्या भूले-बिसरे भी उनके
स्मरण में आती नही रास?
या दरबारी षडयंत्रो में
आता वृंदावन अनायास?
बंसी के छुट जाने से
सुदर्शन हाथ में आने से
तीरों पर तीर चलाने से
या कूटनीति समझाने से
क्या जीवन ताजा होता है?
या प्रेम अभागा होता है?
रथचलित पांव जब रुकते है
क्या तभी सुभागा होता है?
क्या सच में सब जन का जीवन
है खण्डों में बंटा हुआ?
या सत्ता-सुख ही वो मद है
जिससे प्रेमी है कटा हुआ?
क्या राज काज अब कठिन हुआ?
या उनको कठिन सुहाता है?
या युद्धों की शंखनाद में
जीवन भागा जाता है?
ये प्रश्न मेरे अनसुलझे हैं
इनके उत्तर ही पाने हैं
जब कृष्ण यहां पर आएंगे
ये द्वंद उन्हें सुलझाने हैं..।
© अंकेश कुमार वर्मा
रूठी बंसी बजवाऊंगी
हो भले अड़े वो जाने को
रुकने को तनिक मनाऊंगी
निकट समय में कान्हा को
मथुरा भी हमे छुड़ाने हैं
कुछ प्रश्न मेरे अनसुलझे हैं
उनके उत्तर भी पाने है
क्या माखन मिश्री का चटक स्वाद
अब भी है उनका मनभावन?
है बहुत बड़ी मथुरा नगरी?
है वृन्दावन जैसा सावन?
क्या बरसाना की याद कभी
लाती है दुख के बादल को?
लाखों दासी से घिरे-घिरे
क्या भूल गए यमुना जल को?
क्या भूले-बिसरे भी उनके
स्मरण में आती नही रास?
या दरबारी षडयंत्रो में
आता वृंदावन अनायास?
बंसी के छुट जाने से
सुदर्शन हाथ में आने से
तीरों पर तीर चलाने से
या कूटनीति समझाने से
क्या जीवन ताजा होता है?
या प्रेम अभागा होता है?
रथचलित पांव जब रुकते है
क्या तभी सुभागा होता है?
क्या सच में सब जन का जीवन
है खण्डों में बंटा हुआ?
या सत्ता-सुख ही वो मद है
जिससे प्रेमी है कटा हुआ?
क्या राज काज अब कठिन हुआ?
या उनको कठिन सुहाता है?
या युद्धों की शंखनाद में
जीवन भागा जाता है?
ये प्रश्न मेरे अनसुलझे हैं
इनके उत्तर ही पाने हैं
जब कृष्ण यहां पर आएंगे
ये द्वंद उन्हें सुलझाने हैं..।
© अंकेश कुमार वर्मा
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