दोस्तों की टोली से आई
बुझी एक आवाज
भूखों से क्यूँ इतना
कतराती है सरकार
क्या वो डरती है
डरती है या छिपा रही है क्षोभ
न कुछ कर पाने की
या भूली है वो बात
कुछ खोकर पाने की
या अपने जैसों को
हजम नही कर सकती
या सब कर सकती है
पर नही है करती
सरकारें तो बाबा होती हैं
ख़ुदा के नेमत से भी
कुछ ज्यादा होती हैं
थे मौन सभी मुँह खोले थे
एक वृद्ध वहाँ बस बोले थे
सरकारें वेश्या होती हैं
दिखती नटखट
काम नही पर
बिगड़े बोल में
मधुशाला है
कुर्सी के एक मोह ने उनके
दिल पर घूंघट डाला है
सरकारें ये ख़ुदा नही हैं
सरकारें ये नही हैं जोगन
इनकी अपनी खुद की बंसी
इनका खुद का है वृन्दावन
जग ले साथ नही चल सकती
पापों के कोखों में पलती
एक यही तो सत्य जगत का
बाकी सब कुछ माया है
सरकारों का काम पूछने
कौन अभागा आया है ।
© अंकेश वर्मा
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें