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में प्रेम माँगने आया हूँ...🍁

कुछ प्रेम भरे आलिंगन हैं
कुछ विरह के मारे क्रंदन हैं
कुछ यादें मीठी-खट्टी हैं
कुछ गीली-पीली चिट्ठी हैं
भर झोली उनको लाया हूँ
मैं प्रेम मांगने आया हूँ..

कुछ सुप्त व्यथा के वन्दन हैं
कुछ प्रेम में भीगे चंदन हैं
जेबों में मेरे कंगन हैं
जो प्रेम-पगे अभिनंदन हैं
दुधमुहे प्रेम का साया हूँ
मैं प्रेम मांगने आया हूँ

पाने को केवल तुम्हें एक
मैं हुआ द्रवित वर्षों अनेक
बस केवल तेरा रूप देख
खो बैठा हूँ अपना विवेक
मैं सहज-व्यक्ति भरमाया हूँ
मैं प्रेम मांगने आया हूँ ।

© अंकेश वर्मा

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घर मे घर..🍁

कभी बँटवारे  तो कभी घर के  भीतरी दीवारों का द्वन्द कभी अपनी अवहेलना तो कभी पिता की तानाशाही से कभी माँ के साथ को अथवा बहन के भीगे नयनों से या अपनी सत्ता स्थापित करने को कई बार खुद से भी बिगड़ते हैं रिश्ते बच्चे जब बड़े हो जाते है घर मे कई घर हो जाते हैं..!                    - अंकेश वर्मा 

गज़ल..🍁

उसने हमपर रहमत की हम बिखर गए रोका-टोका राह शजर* की बिखर गए.। हुए जुनूनी बस्ती-बस्ती डेरा डाला राह कटीली जंगल घूमे बिखर गए.। उसने की गद्दारी बेशक अपना माना हममे थी खुद्दारी फिर भी बिखर गए.। साथ रहे और उसके दिल पर जुम्बिश* की खुद को दिया अज़ाब* और हम बिखर गए.। उसने उनको अपनाया जिनको चाहा उसकी जीनत उसकी जन्नत हम बिखर गए.। सुना बने वो जिनपर उसने हाथ रखा हम ही एक नाक़ाबिल थे सो बिखर गए.।। शजर*- पेड़ जुम्बिश*- हलचल अज़ाब*- पीड़ा                               - अंकेश वर्मा

असीमित इच्छाएं ...🍁

तुम्हारे अविश्वास की कालकोठरी में मैं अनहोनी को होनी मानता था तुम्हारा होना सावन का आभासी था मैं तुमसे मिलकर, अपना सर्वस्व खोना चाहता था ठीक उसी भांति, जैसे ओस की बूंद सूखकर खो देती है अपना स्वरूप पुनः सृष्टि के निर्माण को । © ANKESH VERMA