कभी खुद को वक्त के तराजू में रखना
फिर गौर करना
कहीं तुम भी वही तो नही
जिनके तौर-ए-जिंदगी को तुम कोसते हो
तुम्हारे मुस्कान पर हजारों रुसवाईयाँ शर्माती है
पर खुद को इनकी आड़ में कब छिपाओगे
अपने झूठे जज़्बात और उलझे रिश्तों को
खुद से दरकिनार करना
और फिर सोचना
कहीं उसे सब पता तो नही है
बगैर तुम्हारे कुछ भी बताए
नवीनता हमेशा उल्लास लाती है मगर
पुराने घर के प्यार को झुठलाया नही जाता
इसलिए निपट अकेले हो जिस क्षण
तब खुद के भीतर झाँकना
और फिर महसूस करना
कहीं दुनिया को खुद में समेटने के चक्कर में
तुम अकेले तो नही होते जा रहे
रिश्तों का बनावटीपन ज़ेहन में रखना
ये छिपकर भी आँखो से ओझल नही होता
ये अलग बात है कि
किसी को उसे देखना नही होता
अपने ख़्यालों के पन्ने पलटना
और फिर देखना
वो जो सिर्फ तुम्हारे थे
जिन पर सिर्फ तुम्हारा अधिकार था
एक-एक कर तुमसे दूर क्यों चले गए..!
- अंकेश वर्मा
फिर गौर करना
कहीं तुम भी वही तो नही
जिनके तौर-ए-जिंदगी को तुम कोसते हो
तुम्हारे मुस्कान पर हजारों रुसवाईयाँ शर्माती है
पर खुद को इनकी आड़ में कब छिपाओगे
अपने झूठे जज़्बात और उलझे रिश्तों को
खुद से दरकिनार करना
और फिर सोचना
कहीं उसे सब पता तो नही है
बगैर तुम्हारे कुछ भी बताए
नवीनता हमेशा उल्लास लाती है मगर
पुराने घर के प्यार को झुठलाया नही जाता
इसलिए निपट अकेले हो जिस क्षण
तब खुद के भीतर झाँकना
और फिर महसूस करना
कहीं दुनिया को खुद में समेटने के चक्कर में
तुम अकेले तो नही होते जा रहे
रिश्तों का बनावटीपन ज़ेहन में रखना
ये छिपकर भी आँखो से ओझल नही होता
ये अलग बात है कि
किसी को उसे देखना नही होता
अपने ख़्यालों के पन्ने पलटना
और फिर देखना
वो जो सिर्फ तुम्हारे थे
जिन पर सिर्फ तुम्हारा अधिकार था
एक-एक कर तुमसे दूर क्यों चले गए..!
- अंकेश वर्मा
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