चटकीले रंगों और स्याह रात से
शालीन और बेबुनियादी बात से
बिना चाय के सुबह के शुरुआत से
मेरे कमरे को शिकायत रहती है
हैरान और बोझिल लोगों से
बिदकते और ख़ामोश जुबानों से
और मेरे खुद के एकाकीपन से भी
मेरे कमरे को शिकायत रहती है
बेतरतीब न हो सलीके से रखे कपड़ों से
कलमों का कम होना या न होना और
मेज पर हिन्दी उपन्यास की गैरमौजूदगी से
मेरे कमरे को शिकायत रहती है
जब दिन भर गुम हो शाम को वापस आता हूँ
जब बिना वजह मैं आधी रात तक जगता हूँ
बिना वजह मौसम को कोसने से भी
मेरे कमरे को शिकायत रहती है..!
- अंकेश वर्मा
शालीन और बेबुनियादी बात से
बिना चाय के सुबह के शुरुआत से
मेरे कमरे को शिकायत रहती है
हैरान और बोझिल लोगों से
बिदकते और ख़ामोश जुबानों से
और मेरे खुद के एकाकीपन से भी
मेरे कमरे को शिकायत रहती है
बेतरतीब न हो सलीके से रखे कपड़ों से
कलमों का कम होना या न होना और
मेज पर हिन्दी उपन्यास की गैरमौजूदगी से
मेरे कमरे को शिकायत रहती है
जब दिन भर गुम हो शाम को वापस आता हूँ
जब बिना वजह मैं आधी रात तक जगता हूँ
बिना वजह मौसम को कोसने से भी
मेरे कमरे को शिकायत रहती है..!
- अंकेश वर्मा