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प्रेम गीत गाएंगे..🍁

हो की बरखा जानलेवा
या पवन हो मौत लाई
तेज लहर पर बैठ संग-संग
हो अभागन साथ आई
हम सभी ही एक रंग के 
बन ध्वजा लहराएंगे
हम प्रेम गीत गाएंगे

हों की बिगड़े बोल सबके
या सियासत बोझ डाले
तार दे सब दुखी जनों को
या दिखाए स्वप्न काले
पीड़ितों के हम बसंत
बन धुरी इतराएंगे
हम प्रेम गीत गाएंगे



बांध दें जंजीर सबको
या जला दें बस्तियां 
रोक दें सब मार्ग अपने 
रोक दें सब कस्तियाँ
डूबते सांसों में हम मिल
पल दो पल मुस्काएंगे
हम प्रेम गीत गाएंगे
स्याह काली रात में भी 
नव-उन्माद लाएंगे 
हम प्रेम गीत गाएंगे
हम प्रेम गीत गाएंगे..।

         -अंकेश वर्मा

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घर मे घर..🍁

कभी बँटवारे  तो कभी घर के  भीतरी दीवारों का द्वन्द कभी अपनी अवहेलना तो कभी पिता की तानाशाही से कभी माँ के साथ को अथवा बहन के भीगे नयनों से या अपनी सत्ता स्थापित करने को कई बार खुद से भी बिगड़ते हैं रिश्ते बच्चे जब बड़े हो जाते है घर मे कई घर हो जाते हैं..!                    - अंकेश वर्मा 

गज़ल..🍁

उसने हमपर रहमत की हम बिखर गए रोका-टोका राह शजर* की बिखर गए.। हुए जुनूनी बस्ती-बस्ती डेरा डाला राह कटीली जंगल घूमे बिखर गए.। उसने की गद्दारी बेशक अपना माना हममे थी खुद्दारी फिर भी बिखर गए.। साथ रहे और उसके दिल पर जुम्बिश* की खुद को दिया अज़ाब* और हम बिखर गए.। उसने उनको अपनाया जिनको चाहा उसकी जीनत उसकी जन्नत हम बिखर गए.। सुना बने वो जिनपर उसने हाथ रखा हम ही एक नाक़ाबिल थे सो बिखर गए.।। शजर*- पेड़ जुम्बिश*- हलचल अज़ाब*- पीड़ा                               - अंकेश वर्मा

असीमित इच्छाएं ...🍁

तुम्हारे अविश्वास की कालकोठरी में मैं अनहोनी को होनी मानता था तुम्हारा होना सावन का आभासी था मैं तुमसे मिलकर, अपना सर्वस्व खोना चाहता था ठीक उसी भांति, जैसे ओस की बूंद सूखकर खो देती है अपना स्वरूप पुनः सृष्टि के निर्माण को । © ANKESH VERMA