बंद आंखों के अंधेरे में देखा है मैंने
ये जागता सपना
तुम मिलती भी हो
और बिना देखे चली जाती हो
हाँ महसूस तो करता हूँ मैं
सुहाने अहसास तुम्हारे आहट के
जो होते तो हैं
और नही भी
बिखरी जुल्फ़े लिए
तुम सामने आती हो
स्याह परछाई की तरह
गुम भी हो जाती हो
तुम दिखती तो हो
मगर न जाने क्यों दूर जाते धुँए सी
मतवाला मैं कब सो जाता हूँ
जागते-जागते
याद तो है
पर भूल जाता तुम्हे देखने के लिए..।।
- अंकेश वर्मा
ये जागता सपना
तुम मिलती भी हो
और बिना देखे चली जाती हो
हाँ महसूस तो करता हूँ मैं
सुहाने अहसास तुम्हारे आहट के
जो होते तो हैं
और नही भी
बिखरी जुल्फ़े लिए
तुम सामने आती हो
स्याह परछाई की तरह
गुम भी हो जाती हो
तुम दिखती तो हो
मगर न जाने क्यों दूर जाते धुँए सी
मतवाला मैं कब सो जाता हूँ
जागते-जागते
याद तो है
पर भूल जाता तुम्हे देखने के लिए..।।
- अंकेश वर्मा