चाँदनी रातों ने भी अपने लिबास बदल दिए
तब हमने भी अपने अहसास बदल दिए
अब कौन करे बार-बार इस घर की मरम्मत
इसलिए हमने इसके असास बदल दिए
कौन रोये इस ज़हां में एक शख्स की खातिर
और क्यों रोये ये ज़हां किसी शख्स की खातिर
पनाह नसीब नही यहाँ अपनो की बस्ती में
ये सोच हमने भी अपने ग़मगुस्सार बदल दिए
सुकूँ न मिला ये मख़मूर अपने गुलिस्तां में भी
इसलिए हमने अब अपने गुलजार बदल दिए..!
- अंकेश वर्मा
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