इश्क़ के शहर में ग़मों की तेज धार है
जाने क्यों सभी को बस इसी का इंतजार है.।
उसके आने की अब कोई खबर भी तो न रही
हमें फिर क्यों उसी का इज्तिरार-ए-दीदार है.।
मिरे गाँव के हालात अब भी तो नही बदले
मिरे गाँव मे अब भी धोवन पाने की कतार है.।
हम खुद-ब-खुद चाहते है उसके पैरों का जूठन
ये ज़मीर इस कदर सियासत का इख़्तियार है.।
ये जिंदगी जो रही बस कुछ दिन की रही
मिरा वो कॉलिज ही मिरी ख़ुशी का इख़्तिसार है.।
हम दोस्त भी अब पहले से न रहे ये मख़मूर
जाने कितने सवालों से मिरा ये दामन दागदार है.।
और मिरे वालिद ने भी तो मिरे लिए रखें होंगे रोज़े
एक वो ही तो हैं जो मिरे गमगुस्सार हैं..।।
-अंकेश वर्मा