प्रेम चुनता है
नित नए पत्ते
कुछ गिरते है
कुछ देते हैं..
थोड़ी देर सहारा
कुछ बलि चढ़ते है
पूजा-पाठ के
कुछ ठिठोली में
टूट जाते है
लेकिन प्रेम
केवल पत्ते नही
बल्कि टहनी भी है
जो जकड़ता है
नए पत्तों को
खुद के भीतर
जो करता है उनको
खुद में आत्मसात
और जड़ है प्रेम-सार
वो बांधता है
मानवता को
एकसूत्र में
बिना किसी
खाद-पानी के
जो वो उखड़े
तो जीवन नही बचता..!
- अंकेश वर्मा
नित नए पत्ते
कुछ गिरते है
कुछ देते हैं..
थोड़ी देर सहारा
कुछ बलि चढ़ते है
पूजा-पाठ के
कुछ ठिठोली में
टूट जाते है
लेकिन प्रेम
केवल पत्ते नही
बल्कि टहनी भी है
जो जकड़ता है
नए पत्तों को
खुद के भीतर
जो करता है उनको
खुद में आत्मसात
और जड़ है प्रेम-सार
वो बांधता है
मानवता को
एकसूत्र में
बिना किसी
खाद-पानी के
जो वो उखड़े
तो जीवन नही बचता..!
- अंकेश वर्मा