हाथ में हाथ ले साथ चलते हुए जमाने भर की नजरों से संभलते हुए होके तुम में फ़ना मेरी जां सच कहूं तुम्हें चूम ही लूंगा गले मिलते हुए क्या बताऊं तुम कितनी हसीं लग रही चाँद के करीब से निकलते हुए साथ में मैं रहूं फिर भी दूरी लगे बाँह भर लेना हमको मचलते हुए है हकीकत या है ये सपना कोई ख़्याल आया है यूँ ही टहलते हुए... © Ankesh Verma
कुछ पुण्य न अर्जित किया कुछ साध्य साधन चुक गए कुछ सुरम्य दिन भी दीपक किनारे छिप गए देखता हूँ वक्त बीते मैं कहाँ था सोचता हो जीव कोई मैं उसे गिद्धों समान नोचता स्वयं, स्वयं को देखकर भ्रमित हो जाता हूँ रत्न सारे हारता हूँ...२ x