रोड़े बन जाते हैं
मेरे अपने ही हालात
रोकते हैं मेरा रास्ता
मेरी कस्ती मझधार में है
केवल मुझ तक हैं मेरी सांसे
मेरी आहट भी बस मुझे है
मेरा मान,मेरा अभिमान
सब मुझमे दफन हैं
मेरे स्वप्न एक-एक कर
सिमट गए हैं मेरे ही भीतर
इनका अस्तित्व तो है
परन्तु असम्भव प्रतीत होता है
इनका चरितार्थ होना
तौलता हूँ मैं समाज को
अपने तर्क की तराजू पर
उसकी चीर फाड़ करता हूँ
किसी डॉक्टर की भांति
और अपने आंसू को
बनाता हूँ स्याही कुछ लिखने को
ये जरिया बनता जा रहा है
मेरी भड़ास निकालने का
मेरा खुद का लिखा भी
अब मुझे थकाता है
किसी अपने का साथ भी
नही दे पा रहा मुझे
मेरे खालीपन से राहत
किसी खाली बोतल में
कैद आत्मा की तरह
मैं सब कुछ महसूस करके भी
केवल और केवल मौन हूँ..।