तुम्हारे बाग आज गुलज़ार हैं
तुमने सींचे हैं अपने बगीचे
हम जैसों के रक्त की बूंदों से
तुम्हारी कुर्सी की खातिर
बहाये हैं हमने पाले में पसीने
तुम्हारी जीत को हमने
लाठियां खाई हैं जमीदारों की
सत्ता के गलियारों में
तुम्हारी हनक के लिए
हमने झेलें हैं पुलिस के डंडे
और पानी की बौछार,
इन सबके बावजूद भी
आज हम अपने
अस्तित्व की खोज में हैं
हमें भटकना पड़ता है
दर-दर ठोकरें खाते हुए
अपने परिवार की खातिर
दो जून की रोटी को
कभी कभी लगता है
तुम्हारा न होना
हमारे होने की पहली शर्त है..।
तुमने सींचे हैं अपने बगीचे
हम जैसों के रक्त की बूंदों से
तुम्हारी कुर्सी की खातिर
बहाये हैं हमने पाले में पसीने
तुम्हारी जीत को हमने
लाठियां खाई हैं जमीदारों की
सत्ता के गलियारों में
तुम्हारी हनक के लिए
हमने झेलें हैं पुलिस के डंडे
और पानी की बौछार,
इन सबके बावजूद भी
आज हम अपने
अस्तित्व की खोज में हैं
हमें भटकना पड़ता है
दर-दर ठोकरें खाते हुए
अपने परिवार की खातिर
दो जून की रोटी को
कभी कभी लगता है
तुम्हारा न होना
हमारे होने की पहली शर्त है..।