हे त्रिभुवन प्यारे जग स्वामी
हो गए हो कैसे अभिमानी
दे दर्शन अपने शीतल छवि का
कष्ट हरो सब निर्बल जन का
हम भी तुम्हरे चरण पखारें
जन-धन सब तुम पर न्यौछारें
तुम्हरे दर्शन नयनन सुख दें
विरह तुम्हारी सम्बल तोड़ें
आये बसो मन ही मन राजा
देहु सबय जन प्रेम को धागा
रौद्र रूप ले कष्ट निवारो
कलयुग के जन-जन को तारो
अंधियारों में दीप जलाओ
देहु सबय सुख मन हर्षाओ
आये बसो घर घर मधुसूदन
देखि सरस् होइ जीवन-जीवन.।
हो गए हो कैसे अभिमानी
दे दर्शन अपने शीतल छवि का
कष्ट हरो सब निर्बल जन का
हम भी तुम्हरे चरण पखारें
जन-धन सब तुम पर न्यौछारें
तुम्हरे दर्शन नयनन सुख दें
विरह तुम्हारी सम्बल तोड़ें
आये बसो मन ही मन राजा
देहु सबय जन प्रेम को धागा
रौद्र रूप ले कष्ट निवारो
कलयुग के जन-जन को तारो
अंधियारों में दीप जलाओ
देहु सबय सुख मन हर्षाओ
आये बसो घर घर मधुसूदन
देखि सरस् होइ जीवन-जीवन.।